नहीं बिश्रांम लहूँ धरनींधर -रैदास: Difference between revisions
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भये अति छीन खेद माया बस, जस तिन ताप पर नगरि हतै तस।।2।। | भये अति छीन खेद माया बस, जस तिन ताप पर नगरि हतै तस।।2।। | ||
द्वारैं न दसा बिकट बिष कारंन, भूलि पर्यौ मन या बिष्या बन।।3।। | द्वारैं न दसा बिकट बिष कारंन, भूलि पर्यौ मन या बिष्या बन।।3।। | ||
कहै रैदास सुमिरौ बड़ राजा, काटि दिये जन साहिब | कहै रैदास सुमिरौ बड़ राजा, काटि दिये जन साहिब लाजा।।4।। | ||
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Latest revision as of 10:44, 1 November 2014
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नहीं बिश्रांम लहूँ धरनींधर। |
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |