सुनीति: Difference between revisions

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*महाराज उत्तानपाद की दो रानियाँ थीं- 'सुनीति' और '[[सुरुचि]]'।
*महाराज उत्तानपाद की दो रानियाँ थीं- 'सुनीति' और '[[सुरुचि]]'।
*उत्तानपाद के सुनीति से ध्रुव तथा सुरुचि से उत्तम नामक पुत्र उत्पन्न हुये थे।
*उत्तानपाद के सुनीति से ध्रुव तथा सुरुचि से [[उत्तम]] नामक पुत्र उत्पन्न हुये थे।
*यद्यपि सुनीति बड़ी रानी थीं, किन्तु राजा उत्तानपाद का प्रेम सुरुचि के प्रति अधिक था।
*यद्यपि सुनीति बड़ी रानी थीं, किन्तु राजा उत्तानपाद का प्रेम सुरुचि के प्रति अधिक था।
*एक बार उत्तानपाद ध्रुव को गोद में लिये बैठे थे, तभी छोटी रानी सुरुचि वहाँ आई। सुनीति के पुत्र ध्रुव को राजा की गोद में बैठे देखकर वह ईर्ष्या से जल उठी। झपट कर उसने ध्रुव को राजा की गोद से खींच लिया और अपने पुत्र उत्तम को उनकी गोद में बैठा दिया।
*एक बार उत्तानपाद ध्रुव को गोद में लिये बैठे थे, तभी छोटी रानी सुरुचि वहाँ आई। सुनीति के पुत्र ध्रुव को राजा की गोद में बैठे देखकर वह ईर्ष्या से जल उठी। झपट कर उसने ध्रुव को राजा की गोद से खींच लिया और अपने पुत्र उत्तम को उनकी गोद में बैठा दिया।
*सारी बातें जानने के पश्चात सुनीति ने बालक ध्रुव से कहा-
*सारी बातें जानने के पश्चात् सुनीति ने बालक ध्रुव से कहा-
 


"बेटा ध्रुव! तेरी सौतेली माँ [[सुरुचि]] से अधिक प्रेम होने के कारण तेरे पिता हम लोगों से दूर हो गये हैं। अब हमें उनका सहारा नहीं रह गया है। तू भगवान को अपना सहारा बना ले। सम्पूर्ण लौकिक तथा अलौकिक सुखों को देने वाले [[विष्णु|भगवान नारायण]] के अतिरिक्त तुम्हारे दुःख को दूर करने वाला और कोई नहीं है। तू केवल उनकी [[भक्ति]] कर।"  
"बेटा ध्रुव! तेरी सौतेली माँ [[सुरुचि]] से अधिक प्रेम होने के कारण तेरे पिता हम लोगों से दूर हो गये हैं। अब हमें उनका सहारा नहीं रह गया है। तू भगवान को अपना सहारा बना ले। सम्पूर्ण लौकिक तथा अलौकिक सुखों को देने वाले [[विष्णु|भगवान नारायण]] के अतिरिक्त तुम्हारे दुःख को दूर करने वाला और कोई नहीं है। तू केवल उनकी [[भक्ति]] कर।"  

Latest revision as of 07:33, 7 November 2017

सुनीति महाराज उत्तानपाद की रानी थीं, जिनके गर्भ से ध्रुव जैसे तेजस्वी बालक ने जन्म लिया था।

  • महाराज उत्तानपाद की दो रानियाँ थीं- 'सुनीति' और 'सुरुचि'।
  • उत्तानपाद के सुनीति से ध्रुव तथा सुरुचि से उत्तम नामक पुत्र उत्पन्न हुये थे।
  • यद्यपि सुनीति बड़ी रानी थीं, किन्तु राजा उत्तानपाद का प्रेम सुरुचि के प्रति अधिक था।
  • एक बार उत्तानपाद ध्रुव को गोद में लिये बैठे थे, तभी छोटी रानी सुरुचि वहाँ आई। सुनीति के पुत्र ध्रुव को राजा की गोद में बैठे देखकर वह ईर्ष्या से जल उठी। झपट कर उसने ध्रुव को राजा की गोद से खींच लिया और अपने पुत्र उत्तम को उनकी गोद में बैठा दिया।
  • सारी बातें जानने के पश्चात् सुनीति ने बालक ध्रुव से कहा-


"बेटा ध्रुव! तेरी सौतेली माँ सुरुचि से अधिक प्रेम होने के कारण तेरे पिता हम लोगों से दूर हो गये हैं। अब हमें उनका सहारा नहीं रह गया है। तू भगवान को अपना सहारा बना ले। सम्पूर्ण लौकिक तथा अलौकिक सुखों को देने वाले भगवान नारायण के अतिरिक्त तुम्हारे दुःख को दूर करने वाला और कोई नहीं है। तू केवल उनकी भक्ति कर।"


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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