चतुर्भुजदास: Difference between revisions
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Revision as of 13:57, 2 June 2011
राधावल्लभ सम्प्रदाय के प्रसिद्ध भक्त चतुर्भुजदास का वर्णन नाभा जी ने अपने 'भक्तमाल' में किया है। उसमें जन्मस्थान, सम्प्रदाय, छाप और गुरु का भी स्पष्ट संकेत है। ध्रुवदास ने भी 'भक्त नामावली' में इनका वृत्तान्त लिखा है। इन दोनों जीवन वृत्तों के आधार पर चतुर्भुजदास गोंडवाना प्रदेश, जबलपुर के समीप गढ़ा नामक गाँव के निवासी थे। इन्होंने अपनी प्रसिद्ध कृति 'द्वादश यश' में रचना संवत दिया है। सेवक जी दामोदर दास के वे समकालीन थे, अत: इन दोनों आधारों पर इनका जन्म संवत 1585 (सन् 1528) के आसपास निश्चित किया जाता है। इनके बारह ग्रन्थ उपलब्ध हैं, जो 'द्वादश यश' नाम से विख्यात हैं। सेठ मणिलाल जमुनादास शाह ने अहमदाबाद से इसका प्रकाशन करा दिया है। ये बारह रचनाएँ पृथक्-पृथक् नाम से भी मिलती हैं। 'हितजू को मंगल' , 'मंगलसार यश' और 'शिक्षासार यश' इनकी उत्कृष्ट रचनाएँ हैं।
चतुर्भुजदास की भाषा
चतुर्भुजदास की भाषा शुद्ध ब्रजभाषा नहीं है, उस पर बैसवाड़ी और बुन्देली का गहरा प्रभाव है। वे संस्कृत भाषा के भी विद्वान थे, उन्होंने अपने ग्रन्थ की टीका स्वयं संस्कृत में लिखी है। उनकी संस्कृत भाषा में अच्छा प्रवाह है। 'द्वादश यश' के अध्ययन से यह भी विदित होता है कि भक्ति को जीवन का सर्वस्व स्वीकार करने पर भी उन्होंने दम्भ और पाखण्ड का पूरे जोर के साथ खण्डन किया है। कुछ स्थलों पर अपने युग के दुष्प्रभावों का भी वर्णन है। गुरु सेवा आदि पर बल दिया गया है। काव्य की दृष्टि से बहुत उच्चकोटि की रचना इसे नहीं कहा जा सकता, किन्तु भाव-वस्तु की दृष्टि से इसका महत्त्व है। इन्हें भी अष्टछाप के कवियों में माना जाता है । इनकी भाषा चलती और सुव्यवस्थित है । इनके बनाए निम्न ग्रंथ मिले हैं ।
कृतियाँ
- द्वादशयश
- भक्तिप्रताप
- हितजू को मंगल
- मंगलसार यश और
- शिक्षासार यश
टीका टिप्पणी और संदर्भ
[सहायक-ग्रन्थ-
- अष्टछाप और वल्लभ सम्प्रदाय: डा. दीनदयालु गुप्त;
- अष्टछाप निर्णय: प्रभुदयाल मीतल;
- राधा वल्लभ सम्प्रदाय- सिद्धान्त और साहित्य: डा. विजयेन्द्र स्नातक।]