मांडवी: Difference between revisions

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Latest revision as of 12:17, 21 March 2014

चित्र:Disamb2.jpg मांडवी एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- मांडवी (बहुविकल्पी)

मांडवी अयोध्या के राजा दशरथ की पुत्रवधु और श्रीराम के भाई भरत की पत्नी थी। रामकाव्य में उसका चरित्र यद्यपि संक्षेप में ही है, पर वह पति-पारायणा एवं साध्वी नारी के रूप में चित्रित की गई है। उसके चरित्र के अनुराग-विराग एवं आशा-निराशा का विचित्र द्वन्द्व है। वह संयोगिनी होकर भी वियोगिनी सा जीवन व्यतीत करती है।‘साकेत-संत’ की वह नायिका है। वह कुल की मार्यादानुरूप आचरण करती है। वह भरत से एकनिष्ठ एवं समर्पण भाव से प्रेम करती है। वह कहती है-

और मैं तुम्हें हृदय में थाप, बनूँगी अर्ध्य आरती आप ।
विश्व की सारी कांति समेट, करूँगी एक तुम्हारी भेंट ।।[1]

माण्डवी भरत के सुख-दुःख की सहभागिनी है। उसका चरित्र पतिपरायणता, सेवाभावना और त्याग से ओत-प्रोत है। पति की व्यथित दशा देखकर वह कह उठती है कि- 

नम्र स्वर में वह बोली ‘नाथ’! बटाऊँ कैसे दुःख में हाथ,
बता दो यदि हो कहीं उपाय, टपाटप गिरे अश्रु असहाय ।।[2]

डॉ. श्यामसुन्दर दास के शब्दों में माण्डवी तापसी जीवन के कारण एक विशिष्ट व्यक्तित्व को ग्रहण किये हुए है और इसलिए हिन्दी महाकाव्यों के नारी पात्रों के मध्य में उसे अलग ही खोजा जा सकता है।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. साकेत, संत डॉ. मिश्र, प्रथम सर्ग, पृ. 26
  2. साकेत, संत डॉ. मिश्र, चतुर्थ सर्ग, पृ. 55
  3. हिन्दी महाकाव्यों में नारी चित्रण, पृ. 115

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