उसमान: Difference between revisions
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<poem>आदि हुता विधि माथे लिखा । अच्छर चारि पढ़ै हम सिखा। | <poem>आदि हुता विधि माथे लिखा । अच्छर चारि पढ़ै हम सिखा। | ||
देखत | देखत जगत् चला सब जाई । एक वचन पै अमर रहाई। | ||
वचन समान सुधा जग नाहीं । जेहि पाए कवि अमर रहाहीं। | वचन समान सुधा जग नाहीं । जेहि पाए कवि अमर रहाहीं। | ||
मोहूँ चाउ उठा पुनि हीए । होउँ अमर यह अमरित पीए</poem> | मोहूँ चाउ उठा पुनि हीए । होउँ अमर यह अमरित पीए</poem> |
Revision as of 13:46, 30 June 2017
उसमान जहाँगीर के समय में उपस्थित थे और गाजीपुर के रहने वाले थे। इनके पिता का नाम 'शेख हुसैन' था। इनके चार भाई थे- शेख अजीज, शेख मानुल्लाह, शेख फैजुल्लाह और शेख हसन। उसमान ने अपना एक उपनाम 'मान' भी लिखा है।
- उसमान शाह निज़ामुद्दीन चिश्ती की शिष्य परंपरा में 'हाजी बाबा' के शिष्य थे।
- सन 1022 हिजरी अर्थात् 1613 ईसवी में उसमान ने 'चित्रावली' नाम की पुस्तक लिखी थी। इस पुस्तक के आरंभ में कवि ने स्तुति के उपरांत पैगंबर और चार ख़लीफ़ों की, बादशाह जहाँगीर की तथा शाह निज़ामुद्दीन और हाजी बाबा की प्रशंसा लिखी है। उसके आगे गाजीपुर नगर का वर्णन करके कवि ने अपना परिचय देते हुए लिखा है कि-
आदि हुता विधि माथे लिखा । अच्छर चारि पढ़ै हम सिखा।
देखत जगत् चला सब जाई । एक वचन पै अमर रहाई।
वचन समान सुधा जग नाहीं । जेहि पाए कवि अमर रहाहीं।
मोहूँ चाउ उठा पुनि हीए । होउँ अमर यह अमरित पीए
- कवि ने 'योगी ढूँढ़न खंड' में काबुल, बदख्शाँ, खुरासन, रूस, साम, मिस्र, इस्तंबोल, गुजरात, सिंहलद्वीप आदि अनेक देशों का उल्लेख किया है। सबसे विलक्षण बात है जोगियों का अंग्रेजों के द्वीप में पहुँचने का भी वर्णन किया है -
बलंदीप देखा अंगरेजा । तहाँ जाइ जेहि कठिन करेजा
ऊँच नीच धान संपत्ति हेरा । मद बराह भोजन जिन्ह केरा
- कवि ने इस रचना में जायसी का पूरा अनुकरण किया है। जो जो विषय जायसी ने अपनी पुस्तक में रखे हैं उन विषयों पर उसमान ने भी कुछ कहा है।
- कहीं कहीं तो शब्द और वाक्य विन्यास भी वही हैं। पर विशेषता यह है कि कहानी बिल्कुल कवि की कल्पित है, जैसा कि कवि ने स्वयं कहा है
कथा एक मैं हिए उपाई। कहत मीठ और सुनत सोहाई
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