श्रीरामपूर्वतापनीयोपनिषद: Difference between revisions

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Latest revision as of 13:44, 13 October 2011

अथर्ववेदीय इस उपनिषद में भगवान श्रीराम की पूजा-विधि को पांच खण्डों में अभिव्यक्त किया गया है।
प्रथम खण्ड में 'राम' शब्द के विविध अर्थ प्रस्तुत किये गये हैं-

  • जो इस पृथ्वी पर राजा के रूप में अवतरित होकर भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं, वे 'राम' हैं।
  • जो इस पृथ्वी पर राक्षसों (दुष्प्रवृत्तियों को धारण करने वाले) का वध करते हैं, वे 'राम' हैं।
  • सभी के मन को रमाने वाले, अर्थात आनन्दित करने वाले 'राम' है।
  • राहु के समान चन्द्रमा को निस्तेज करने वाले, अर्थात समस्त लौकिक विभूतियों को निस्तेज करके उच्चतम पुरुषोत्तम रूप धारण करने वाले 'राम' हैं।
  • जिनके नामोच्चार से हृदय में शान्ति, वैराग्य और दिव्य विभूतियों का पदार्पण होता है, वे 'राम' हैं।

द्वितीय खण्ड में 'राम' नाम के बीज-रूप की सर्वव्यापकता और सर्वात्मकता का विवेचन किया गया है। राम ही बीज-रूप में सर्वत्र और सभी जीवात्माओं में स्थित हैं। वे अपनी चैतन्य शक्ति से सभी प्राणियों में जीव-रूप में विद्यमान हैं और स्वयं प्रकाश हैं।
तृतीय खण्ड में सीता और राम की मन्त्र-यन्त्र की पूजा का कथन है। इस बीजमन्त्र (राम) में ही सीता-रूप-प्रकृति और राम-रूप-पुरुष विहार करते हैं। भगवान राम ने स्वयं अपनी माया से मानवी रूप धारण किया और राक्षसों का विनाश किया।
चतुर्थ खण्ड में छह अक्षर वाले राम मन्त्र 'रां रामाय नम:' का अर्थ, देवताओं द्वारा राम की स्तुति, राम के राजसिंहासन का वैभव, राम-यन्त्र की स्तुति से प्राणी का उद्धार आदि का विवेचन है। साधक के ध्यान-चिन्तन में यही भाव सदा रहना चाहिए कि श्रीराम अनन्त तेजस्वी सूर्य के समान अग्नि-रूप हैं।
पांचवें खण्ड में यन्त्रपीठ की पूजा-अर्चना तथा भगवान राम के ध्यानपूर्वक आवरण की पूजा का विधान बताया गया है। भगवान राम की प्रसन्नता से ही 'मोक्ष' की प्राप्ति होती है। वे 'राम' गदा, चक्र, शंख और कमल को अपने हाथों में धारण किये हैं, वे भव-बन्धन के नाशक हैं, जगत के आधार-स्वरूप है, अतिमहिमाशाली हैं और जो सच्चिदानन्द स्वरूप हैं, उन श्रीरघुवीर के प्रति हम नमन करते हैं। इस प्रकार की स्तुति करने वाले साधक को मोक्ष प्राप्त होता है।

  • यह भगवान श्रीराम के स्वरूप को विष्णु के समान दर्शाया गया है और उन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना गया है।
  • अन्त में, श्रीराम अपने धनुर्धारी मनुष्य-रूप में ही अपने सभी भ्राताओं के साथ वैकुण्ठलोक को जाते हैं।

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