रंगलाल बनर्जी: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
 
Line 21: Line 21:
[[Category:साहित्य कोश]]
[[Category:साहित्य कोश]]
[[Category:कवि]]
[[Category:कवि]]
[[Category:आधुनिक साहित्यकार]]
[[Category:आधुनिक साहित्यकार]][[Category:आधुनिक कवि]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 14:52, 14 October 2011

  • रंगलाल बनर्जी (1817-87 ई.) बंगाल के कवि थे।
  • रंगलाल बनर्जी ने अपनी रचनाओं के द्वारा राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार किया तथा देशवासियों में स्वाधीनता की भावना पैदा की।
  • रंगलाल बनर्जी की उदात्त रचना 'पद्मिनी' की यह मार्मिक पंक्ति बड़ी लोकप्रिय थी "स्वाधीनता हीनताय के वसिते चाय रे, के वसिते चाय?"[1]



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

भट्टाचार्य, सच्चिदानन्द भारतीय इतिहास कोश, द्वितीय संस्करण-1989 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 268।

  1. ऐसे राज्य में कौन रहना चाहता है? जहाँ आज़ादी नहीं है?

संबंधित लेख