हरनारायण: Difference between revisions
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Revision as of 12:25, 8 January 2012
हरनारायण ने 'माधवानल कामकंदला' और 'बैताल पचीसी' नामक दो कथात्मक काव्य लिखे हैं। 'माधावानल कामकंदला' का रचनाकाल संवत् 1812 है। इनकी कविता अनुप्रास आदि अलंकारोंसे अलंकृत हैं। एक कवित्त दिया जाता है -
सोहैं मुंड चंद सों, त्रिपुंड सों विराजै भाल,
तुंड राजै रदन उदंड के मिलन तें।
पाप रूप पानिप विघन जल जीवन के,
कुंड सोखि सुजन बचावै अखिलन तें।
ऐसे गिरिनंदिनी के नंदन को ध्यान ही में,
कीबे छोड़ सकल अपानहि दिलन तें।
भुगुति मुकुति ताके तुंड तें निकसि तापै,
कुंड बाँधि कढ़ती भूसुंड के विलन तें।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
आचार्य, रामचंद्र शुक्ल “प्रकरण 3”, हिन्दी साहित्य का इतिहास (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृष्ठ सं. 252।
बाहरी कड़ियाँ
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