मन मेरे सोई सरूप बिचार -रैदास: Difference between revisions

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आदि अंत अनंत परंम पद, संसै सकल निवारं।। टेक।।
आदि अंत अनंत परंम पद, संसै सकल निवारं।। टेक।।
जस हरि कहियत तस तौ नहीं, है अस जस कछू तैसा।
जस हरि कहियत तस तौ नहीं, है अस जस कछू तैसा।
जानत जानत जानि रह्यौ मन, ताकौ मरम कहौ निज कैसा।।१।।
जानत जानत जानि रह्यौ मन, ताकौ मरम कहौ निज कैसा।।1।।
कहियत आन अनुभवत आन, रस मिल्या न बेगर होई।
कहियत आन अनुभवत आन, रस मिल्या न बेगर होई।
बाहरि भीतरि गुप्त प्रगट, घट घट प्रति और न कोई।।२।।
बाहरि भीतरि गुप्त प्रगट, घट घट प्रति और न कोई।।२।।

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मन मेरे सोई सरूप बिचार -रैदास
कवि रैदास
जन्म 1398 ई. (लगभग)
जन्म स्थान काशी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1518 ई.
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
रैदास की रचनाएँ

मन मेरे सोई सरूप बिचार।
आदि अंत अनंत परंम पद, संसै सकल निवारं।। टेक।।
जस हरि कहियत तस तौ नहीं, है अस जस कछू तैसा।
जानत जानत जानि रह्यौ मन, ताकौ मरम कहौ निज कैसा।।1।।
कहियत आन अनुभवत आन, रस मिल्या न बेगर होई।
बाहरि भीतरि गुप्त प्रगट, घट घट प्रति और न कोई।।२।।
आदि ही येक अंति सो एकै, मधि उपाधि सु कैसे।
है सो येक पै भ्रम तैं दूजा, कनक अल्यंकृत जैसैं।।३।।
कहै रैदास प्रकास परम पद, का जप तप ब्रत पूजा।
एक अनेक येक हरि, करौं कवण बिधि दूजा।।४।।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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