मन मेरे सोई सरूप बिचार -रैदास: Difference between revisions
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जानत जानत जानि रह्यौ मन, ताकौ मरम कहौ निज कैसा।।1।। | जानत जानत जानि रह्यौ मन, ताकौ मरम कहौ निज कैसा।।1।। | ||
कहियत आन अनुभवत आन, रस मिल्या न बेगर होई। | कहियत आन अनुभवत आन, रस मिल्या न बेगर होई। | ||
बाहरि भीतरि गुप्त प्रगट, घट घट प्रति और न | बाहरि भीतरि गुप्त प्रगट, घट घट प्रति और न कोई।।2।। | ||
आदि ही येक अंति सो एकै, मधि उपाधि सु कैसे। | आदि ही येक अंति सो एकै, मधि उपाधि सु कैसे। | ||
है सो येक पै भ्रम तैं दूजा, कनक अल्यंकृत जैसैं।।३।। | है सो येक पै भ्रम तैं दूजा, कनक अल्यंकृत जैसैं।।३।। |
Revision as of 10:03, 1 November 2014
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मन मेरे सोई सरूप बिचार। |
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |