नहीं बिश्रांम लहूँ धरनींधर -रैदास: Difference between revisions
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जाकै सुर नर संत सरन अभिअंतर।। टेक।। | जाकै सुर नर संत सरन अभिअंतर।। टेक।। | ||
जहाँ जहाँ गयौ, तहाँ जनम काछै, तृबिधि ताप तृ भुवनपति पाछै।।1।। | जहाँ जहाँ गयौ, तहाँ जनम काछै, तृबिधि ताप तृ भुवनपति पाछै।।1।। | ||
भये अति छीन खेद माया बस, जस तिन ताप पर नगरि हतै | भये अति छीन खेद माया बस, जस तिन ताप पर नगरि हतै तस।।2।। | ||
द्वारैं न दसा बिकट बिष कारंन, भूलि पर्यौ मन या बिष्या बन।।३।। | द्वारैं न दसा बिकट बिष कारंन, भूलि पर्यौ मन या बिष्या बन।।३।। | ||
कहै रैदास सुमिरौ बड़ राजा, काटि दिये जन साहिब लाजा।।४।। | कहै रैदास सुमिरौ बड़ राजा, काटि दिये जन साहिब लाजा।।४।। |
Revision as of 10:03, 1 November 2014
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नहीं बिश्रांम लहूँ धरनींधर। |
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |