प्रीति सधारन आव -रैदास: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "१" to "1")
m (Text replace - "२" to "2")
Line 37: Line 37:
चक को ध्यान दधिसुत कौं होत है, त्यूँ तुम्ह थैं मैं न्यारी।।1।।
चक को ध्यान दधिसुत कौं होत है, त्यूँ तुम्ह थैं मैं न्यारी।।1।।
भोर भयौ मोहिं इकटग जोवत, तलपत रजनी जाइ।
भोर भयौ मोहिं इकटग जोवत, तलपत रजनी जाइ।
पिय बिन सेज क्यूँ सुख सोऊँ, बिरह बिथा तनि माइ।।२।।
पिय बिन सेज क्यूँ सुख सोऊँ, बिरह बिथा तनि माइ।।2।।
दुहागनि सुहागनि कीजै, अपनैं अंग लगाई।
दुहागनि सुहागनि कीजै, अपनैं अंग लगाई।
कहै रैदास प्रभु तुम्हरै बिछोहै, येक पल जुग भरि जाइ।।३।।  
कहै रैदास प्रभु तुम्हरै बिछोहै, येक पल जुग भरि जाइ।।३।।  

Revision as of 10:03, 1 November 2014

चित्र:Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"
प्रीति सधारन आव -रैदास
कवि रैदास
जन्म 1398 ई. (लगभग)
जन्म स्थान काशी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1518 ई.
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
रैदास की रचनाएँ

प्रीति सधारन आव।
तेज सरूपी सकल सिरोमनि, अकल निरंजन राव।। टेक।।
पीव संगि प्रेम कबहूं नहीं पायौ, कारनि कौण बिसारी।
चक को ध्यान दधिसुत कौं होत है, त्यूँ तुम्ह थैं मैं न्यारी।।1।।
भोर भयौ मोहिं इकटग जोवत, तलपत रजनी जाइ।
पिय बिन सेज क्यूँ सुख सोऊँ, बिरह बिथा तनि माइ।।2।।
दुहागनि सुहागनि कीजै, अपनैं अंग लगाई।
कहै रैदास प्रभु तुम्हरै बिछोहै, येक पल जुग भरि जाइ।।३।।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख