माधौ अविद्या हित कीन्ह -रैदास: Difference between revisions
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मोह पासि अबध बाधौ, करियै कौंण उपाइ।।2।। | मोह पासि अबध बाधौ, करियै कौंण उपाइ।।2।। | ||
त्रिजुग जोनि अचेत संम भूमि, पाप पुन्य न सोच। | त्रिजुग जोनि अचेत संम भूमि, पाप पुन्य न सोच। | ||
मानिषा अवतार दुरलभ, तिहू संकुट | मानिषा अवतार दुरलभ, तिहू संकुट पोच।।3।। | ||
रैदास दास उदास बन भव, जप न तप गुरु ग्यांन। | रैदास दास उदास बन भव, जप न तप गुरु ग्यांन। | ||
भगत जन भौ हरन कहियत, ऐसै परंम निधांन।।४।। | भगत जन भौ हरन कहियत, ऐसै परंम निधांन।।४।। |
Revision as of 10:10, 1 November 2014
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माधौ अविद्या हित कीन्ह। |
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |