बरजि हो बरजि बीठल -रैदास: Difference between revisions
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स्वंभू कौ चित चोरि लीयौ है, वा कै पीछैं लागा धावै।।3।। | स्वंभू कौ चित चोरि लीयौ है, वा कै पीछैं लागा धावै।।3।। | ||
इन बातनि सुकचनि मरियत है, सबको कहै तुम्हारी। | इन बातनि सुकचनि मरियत है, सबको कहै तुम्हारी। | ||
नैन अटकि किनि राखौ केसौ, मेटहु बिपति | नैन अटकि किनि राखौ केसौ, मेटहु बिपति हमारी।।4।। | ||
कहै रैदास उदास भयौ मन, भाजि कहाँ अब जइये। | कहै रैदास उदास भयौ मन, भाजि कहाँ अब जइये। | ||
इत उत तुम्ह गौब्यंद गुसांई, तुम्ह ही मांहि समइयै।।५।। | इत उत तुम्ह गौब्यंद गुसांई, तुम्ह ही मांहि समइयै।।५।। |
Revision as of 10:45, 1 November 2014
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बरजि हो बरजि बीठल, माया जग खाया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |