छमा बड़न को चाहिये -रहीम: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) ('{{Poemopen}} <poem> छमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात। कह रहीम ह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
गोविन्द राम (talk | contribs) m (गोविन्द राम ने क्षमा बड़न को चाहिये -रहीम पृष्ठ छमा बड़न को चाहिये -रहीम पर स्थानांतरित किया) |
(No difference)
|
Revision as of 12:53, 24 January 2016
छमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
बड़ों को क्षमा शोभा देती है और छोटों को उत्पात (बदमाशी)। अर्थात अगर छोटे बदमाशी करें कोई बड़ी बात नहीं और बड़ों को इस बात पर क्षमा कर देना चाहिए। छोटे अगर उत्पात मचाएं तो उनका उत्पात भी छोटा ही होता है। जैसे यदि कोई कीड़ा (भृगु) अगर लात मारे भी तो उससे कोई हानि नहीं होती। |
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख