तुझा देव कवलापती सरणि आयौ -रैदास: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
('{{पुनरीक्षण}} {| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - " दुख " to " दु:ख ") |
||
Line 38: | Line 38: | ||
पंच संगी मिलि पीड़ियौ प्रांणि यौं, जाइ न न सकू बैराग भागा। | पंच संगी मिलि पीड़ियौ प्रांणि यौं, जाइ न न सकू बैराग भागा। | ||
पुत्र बरग कुल बंधु ते भारज्या, भखैं दसौ दिसि रिस काल लागा।।2।। | पुत्र बरग कुल बंधु ते भारज्या, भखैं दसौ दिसि रिस काल लागा।।2।। | ||
भगति च्यंतौं तो मोहि | भगति च्यंतौं तो मोहि दु:ख ब्यापै, मोह च्यंतौ तौ तेरी भगति जाई। | ||
उभै संदेह मोहि रैंणि दिन ब्यापै, दीन दाता करौं कौंण उपाई।।3।। | उभै संदेह मोहि रैंणि दिन ब्यापै, दीन दाता करौं कौंण उपाई।।3।। | ||
चपल चेत्यौ नहीं बहुत | चपल चेत्यौ नहीं बहुत दु:ख देखियौ, कांम बसि मोहियौ क्रम फंधा। | ||
सकति सनबंध कीयौ, ग्यान पद हरि लीयौ, हिरदै बिस रूप तजि भयौ अंधा।।4।। | सकति सनबंध कीयौ, ग्यान पद हरि लीयौ, हिरदै बिस रूप तजि भयौ अंधा।।4।। | ||
परम प्रकास अबिनास अघ मोचनां, निरखि निज रूप बिश्रांम पाया। | परम प्रकास अबिनास अघ मोचनां, निरखि निज रूप बिश्रांम पाया। |
Latest revision as of 14:10, 2 June 2017
चित्र:Icon-edit.gif | इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव" |
| ||||||||||||||||
|
तुझा देव कवलापती सरणि आयौ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |