नरहरि चंचल मति मोरी -रैदास: Difference between revisions
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गुन सब तोर मोर सब औगुन, क्रित उपगार न मांनां।।2।। | गुन सब तोर मोर सब औगुन, क्रित उपगार न मांनां।।2।। | ||
मैं तैं तोरि मोरी असमझ सों, कैसे करि निसतारा। | मैं तैं तोरि मोरी असमझ सों, कैसे करि निसतारा। | ||
कहै रैदास कृश्न करुणांमैं, जै जै | कहै रैदास कृश्न करुणांमैं, जै जै जगत् अधारा।।3।। | ||
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नरहरि चंचल मति मोरी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |