अंखियां हरि–दरसन की प्यासी -सूरदास: Difference between revisions
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अंखियां हरि–दरसन की प्यासी। | अंखियां हरि–दरसन की प्यासी। | ||
देख्यौ चाहति कमलनैन कौ¸ निसि–दिन रहति उदासी।। | देख्यौ चाहति कमलनैन कौ¸ निसि–दिन रहति उदासी।। | ||
आए ऊधै फिरि गए आंगन¸ डारि गए गर | आए ऊधै फिरि गए आंगन¸ डारि गए गर फाँसी। | ||
केसरि तिलक मोतिन की माला¸ वृन्दावन के बासी।। | केसरि तिलक मोतिन की माला¸ वृन्दावन के बासी।। | ||
काहू के मन को कोउ न जानत¸ लोगन के मन हांसी। | काहू के मन को कोउ न जानत¸ लोगन के मन हांसी। |
Latest revision as of 10:42, 2 January 2018
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अंखियां हरि–दरसन की प्यासी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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