मरुद्गण: Difference between revisions

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Latest revision as of 07:01, 19 February 2020

मरुद्गण (मरुत् + गण) एक देवगण का नाम है। वेदों में इन्हें रुद्र और वृश्नि का पुत्र लिखा गया है और इनकी संख्या 60 की तिगुनी मानी गई है; पर पुराणों में इन्हें कश्यप और दिति का पुत्र लिखा गया है, जिसे उसके वैमात्रिक भाई इंद्र ने गर्भ में काटकर एक से उनचास टुकड़े कर डाले थे, जो 49 मरुद् हुए।

कश्यप से अदिति को इंद्र समेत आदित्य जन्मे थे और दिति से दैत्य हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष जन्मे थे, जिन्हेंं विष्णु ने मार गिराया था। तब अपने ही सौतेले बेटे इंद्र पर क्रोधित दिति ने अपने पति से ऐसा पुत्र माँगा जो इंद्र का वध कर सके। तब कश्यप ने उन्हें एक ऐसा कठिन व्रत बताया, जिसके करने पर उन्हें ऐसे पुत्र की प्राप्ति हो जाती, जो इंद्र को मारकर इंद्र बन जाता। हालाँकि उसमेंं एक शर्त भी थी कि अगर वह पुत्र इंद्र से मित्रवत रहे तो उसके ही अनुचर होकर रह जायेंगे, जिसे दिति ने स्वीकार कर लिया।

दिति व्रत करने लगी, लेकिन इंद्र को भी इसकी सूचना चल गई। वह अपनी ही सौतेली माँ की सेवा करने लगा। दिति को नहीं पता था कि इंद्र का षड़यंत्र क्या है। सनातन परम्पराओंं में व्रत की और जीने की कुछ मर्यादा स्थापित की गई हैं, जैसे दोपहर में न सोना, खाने से पहले पाँव धोना, सोने से पहले पाँव धोना, बिस्तर पर गीले पैर न सोना आदि।

एक दिन थककर दिति दोपहर में ही बिना पैर धोये सो गई। इंद्र इसी अवसर की तलाश में थे। उन्होंने वायुरूप में अपनी माता के शरीर में प्रवेश कर लिया। गर्भ में घुसकर अपने ही भाई पर वज्र प्रहार किया, जिससे वह अण्ड सात टुकड़ोंं में विभक्त हो गया; लेकिन मरा नहीं। तब इंद्र ने फिर प्रहार किया तो वह 49 हो गए। तब गर्भ के उन 49 अंडों ने इंद्र से प्रार्थना की कि- "हम तो तुम्हारे भाई हैं। हमें मत मारो। हम तुम्हारे मित्रवत रहेंगे।" तब इंद्र को अपने से घृणा हुई और पश्चाताप से बाहर आये और माता से क्षमा मांगी। दिति ने क्षमा कर दिया। वह 49 बच्चे जब पैदा हुए तो इंद्र के अनुचर मरुद्गण बने।

"हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।" सुन्दरकाण्ड की इस चौपाई में उन 49 मरुद्गणों का ही वर्णन है।


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