प्रियमित्र

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 07:50, 23 June 2017 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replacement - "पश्चात " to "पश्चात् ")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

प्रियमित्र धनंजय नामक जिन-धर्म का पालक एक धर्मात्मा राजा था, जो हेमधुति नामक नगरी में राज करता था। राजा ने प्रभावती नामक राजकन्या से विवाह किया था। कुछ समय पश्चात् रानी ने प्रियव्रत नामक बालक को जन्म दिया। राजा ने बहुत दान-पुण्य किए थे। इसीलिए समस्त प्रजानन उसे प्यार करते थे। राजा के नवजात शिशु में प्रीतिकर देव का जीव विद्यमान था, इसीलिए राजा की यश कीर्ति द्विगणित होती गई।

राजा ने प्रियमित्र का विवाह कर दिया और समय पर उसे राज-काज सौंप दिया। बहुत दिनों तक प्रियमित्र शासन करता रहा। उसकी आयुधशाला में जब चक्ररत्न प्रकट हुआ, तो वह चक्रवर्ती सम्राट बन गया। एक दिन प्रियमित्र ने दर्पण में देखा, तो मुख पर वृद्धावस्था के लक्षण उभरे दिखाई दिए। बाल सफ़ेद से दिखे। उसे मोक्ष मार्ग आकर्षित करने लगा। वह क्षेत्रकंर जिनेंद्र की शरण में गया। जिनेंद्र ने ज्ञान दिया कि सम्यक ज्ञान, दर्शन और चरित्र मोक्ष की सीढ़ी हैं, उन्होंने जीव-अजीव, आस्त्रव, बंध, संवर, निर्जरा तथा मोक्ष का विधिवत् सम्यक विवेचन किया। प्रियमित्र ने शुभ मुहूर्त देखकर तृष्णाओं को मारकर अपने पुत्र ‘अरिजय’ को कुल का संचित-संरक्षित राज्य सौंप दिया। संसार त्यागकर स्वयं दीक्षा ग्रहण कर ली। प्रियमित्र को सहस्त्रार स्वर्ग में सूर्यप्रभ देव की स्थिति प्राप्त हुई।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 519 |

  1. वर्ध.च., सर्ग 14-15

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः