जसवंत सिंह द्वितीय

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  • जसवंत सिंह द्वितीय बघेल क्षत्रिय और तेरवाँ, कन्नौज के पास, के राजा थे और बहुत अधिक विद्याप्रेमी थे।
  • इनके पुस्तकालय में संस्कृत और भाषा के बहुत से ग्रंथ थे।
  • इनका कविता काल संवत 1856 अनुमान किया गया है।
  • इन्होंने दो ग्रंथ लिखे एक 'शालिहोत्रा' और दूसरा 'शृंगारशिरोमणि'।
  • इनका दूसरा ग्रंथ शृंगाररस का एक बड़ा ग्रंथ है। कविता साधारण है।

घनन के घोर, सोर चारों ओर मोरन के,
अति चितचोर तैसे अंकुर मुनै रहैं।
कोकिलन कूक हूक होति बिरहीन हिय,
लूक से लगत चीर चारन चुनै रहैं
झिल्ली झनकार तैसो पिकन पुकार डारी,
मारि डारी डारी दु्रम अंकुर सु नै रहैं।
लुनै रहैं प्रान प्रानप्यारे जसवंत बिनु,
कारे पीरे लाल ऊदे बादर उनै रहैं


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