गोकुलनाथ

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 13:40, 11 August 2011 by सारा (talk | contribs) ('गोकुलनाथ और गोपीनाथ प्रसिद्ध कवि रघुनाथ बंदीजन ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

गोकुलनाथ और गोपीनाथ प्रसिद्ध कवि रघुनाथ बंदीजन के पुत्र और पौत्र थे। गोकुलनाथ ने इस महाभारत के अतिरिक्त निम्नलिखित और भी ग्रंथ लिखे हैं -

  1. चेतचंद्रिका,
  2. गोविंद सुखदविहार,
  3. राधाकृष्ण विलास, (संवत् 1858),
  4. राधानखशिख,
  5. नामरत्नमाला (कोश) (संवत् 1870),
  6. सीताराम गुणार्णव,
  7. अमरकोष भाषा (संवत् 1870),
  8. कविमुखमंडन।

चेतचंद्रिका अलंकार का ग्रंथ है जिसमें काशिराज की वंशावली भी दी गई है। 'राधाकृष्ण विलास' रससंबंधी ग्रंथ है और 'जगतविनोद' के बराबर है। 'सीताराम गुणार्णव' अध्यात्म रामायण का अनुवाद है जिसमें पूरी रामकथा वर्णित है। 'कविमुखमंडन' भी अलंकार संबंधी ग्रंथ है। गोकुलनाथ का कविताकाल संवत् 1840 से 1870 तक माना जा सकता है। ग्रंथों की सूची से यह स्पष्ट है कि ये कितने निपुण कवि थे। रीति और प्रबंध दोनों ओर इन्होंने प्रचुर रचना की है। इतने अधिक परिमाण में और इतने प्रकार की रचना वही कर सकता है जो पूर्ण साहित्यमर्मज्ञ, काव्यकला में सिद्ध हस्त और भाषा पर पूर्ण अधिकार रखनेवाला हो। अत: महाभारत के तीनों अनुवादकों में तो ये श्रेष्ठ ही हैं, साहित्य के क्षेत्र में भी ये बहुत ऊँचे पद के अधिकारी हैं। रीतिग्रंथ रचना और प्रबंध रचना दोनों में समान रूप से कुशल और दूसरा कोई कवि रीतिकाल के भीतर नहीं पाया जाता।

महाभारत के जिस जिस अंश का अनुवाद जिसने जिसने किया है उस उस अंश में उसका नाम दिया हुआ है। नीचे तीनों कवियों की रचना के कुछ उदाहरण दिए जाते हैं , गोकुलनाथ सखिन के श्रुति में उकुति कल कोकिलकी। गुरुजन हू पै पुनि लाज के कथान की। गोकुल अरुन चरनांबुज पै गुंजपुंज धुनि सी चढ़ति चंचरीक चरचान की पीतम के श्रवन समीप ही जुगुति होति मैन मंत्र तंत्र सू बरन गुनगान की। सौतिन के कानन में हलाहल ह्वै हलति, एरी सुखदानि! तौ बजनि बिछुवान की (राधाकृष्ण विलास) दुर्ग अतिही महत रक्षित भटन सों चहुँ ओर। ताहि घेरयो शाल्व भूपति सेन लै अति घोर एक मानुष निकसिबे की रही कतहुँ न राह। परी सेना शाल्व नृप की भरी जुद्ध उछाह

लहि सुदेष्णा की सुआज्ञा नीच कीचक जौन। जाय सिंहिनि पास जंबुक तथा कीनी गौन लग्यो कृष्णा सों कहन या भाँति सस्मित बैन। यहाँ आई कहाँ तें? तुम कौन हौ छबि ऐन

नहीं तुम सी लखी भू पर भरी सुषमा बाम। देवि, जच्छिनी, किन्नरी, कै श्री, सची अभिराम। कांति सों अति भरी तुम्हरो लखन बदन अनूप। करैगो नहिं स्वबस काको महा मन्मथ भूप (महाभारत)



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


आचार्य, रामचंद्र शुक्ल “प्रकरण 3”, हिन्दी साहित्य का इतिहास (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृष्ठ सं. 253।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः