जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्या -अमीर ख़ुसरो

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जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्या -अमीर ख़ुसरो
कवि अमीर ख़ुसरो
जन्म 1253 ई.
जन्म स्थान एटा, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1325 ई.
मुख्य रचनाएँ मसनवी किरानुससादैन, मल्लोल अनवर, शिरीन ख़ुसरो, मजनू लैला, आईने-ए-सिकन्दरी, हश्त विहिश
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
अमीर ख़ुसरो की रचनाएँ

जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्या
जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्या, घुँघटा में आग लगा देती,
मैं लाज के बंधन तोड़ सखी पिया प्यार को अपने मान लेती।
इन चूरियों की लाज पिया रखाना, ये तो पहन लई अब उतरत न।
मोरा भाग सुहाग तुमई से है मैं तो तुम ही पर जुबना लुटा बैठी।
मोरे हार सिंगार की रात गई, पियू संग उमंग की बात गई
पियू संत उमंग मेरी आस नई।

अब आए न मोरे साँवरिया, मैं तो तन मन उन पर लुटा देती।
घर आए न तोरे साँवरिया, मैं तो तन मन उन पर लुटा देती।
मोहे प्रीत की रीत न भाई सखी, मैं तो बन के दुल्हन पछताई सखी।
होती न अगर दुनिया की शरम मैं तो भेज के पतियाँ बुला लेती।
उन्हें भेज के सखियाँ बुला लेती।
जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्या।



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