कीजै प्रभु अपने बिरद की लाज -सूरदास

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 14:58, 6 April 2015 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replace - "मजदूर" to "मज़दूर")
Jump to navigation Jump to search
चित्र:Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"
कीजै प्रभु अपने बिरद की लाज -सूरदास
कवि महाकवि सूरदास
जन्म संवत 1535 वि.(सन 1478 ई.)
जन्म स्थान रुनकता
मृत्यु 1583 ई.
मृत्यु स्थान पारसौली
मुख्य रचनाएँ सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य-लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
सूरदास की रचनाएँ

कीजै प्रभु अपने बिरद[1] की लाज।
महापतित कबहूं नहिं आयौ, नैकु तिहारे काज॥
माया सबल धाम धन बनिता, बांध्यौ हौं इहिं साज।
देखत सुनत सबै जानत हौं, तऊ न आयौं बाज॥[2]
कहियत पतित बहुत तुम तारे स्रवननि सुनी आवाज।
दई न जाति खेवट[3] उतराई,[4] चाहत चढ्यौ जहाज॥
लीजै पार उतारि सूर कौं महाराज ब्रजराज।
नई[5] न करन कहत, प्रभु तुम हौ सदा गरीब निवाज॥
 

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बड़ाई।
  2. छोड़ा नहीं।
  3. नाव खेने वाला।
  4. पार उतारने की मज़दूरी।
  5. कोई नई बात।

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः