इल

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इल प्रजापति कर्दम के पुत्र और वाह्लीक देश के राजा थे। वैवस्वत मनु श्रद्धा को संतान नहीं थी। उन्होंने मित्रावरुणों को प्रसन्न करने के लिए वसिष्ठ द्वारा पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराया। श्रद्धा चाहती थीं कि उसे कन्या हो अत: यज्ञ की समाप्ति पर उसे कन्या ही हुई--नाम पड़ा इला। बाद में, मनु के अनुरोध पर, वरिष्ठ ने बालिका को पुत्र बनाया, तब इसका नाम इल पड़ा।[1] एक समय शिकार खेलते हुये वे उस स्थान पर जा पहुँचे, जहाँ कार्तिकेय का जन्म हुआ था। यहाँ भगवान शंकर अपने सेवकों के साथ पार्वती का मनोरंजन करते थे। उस प्रदेश में शिव की माया से सभी प्राणी स्त्री वर्ग के हो गये थे।

राजा इल ने वहाँ देखा कि पार्वती को प्रसन्न करने के लिए शंकर जी ने नारी रूप धारण कर रखा है। वहाँ के सब पशु-पक्षी भी मादा रूप में दिखाई पड़े। परिणामस्वरूप यह फिर स्त्री बन गया और उसके साथी भी सुंदरियों में परिवर्तित हो गये। वे लोग बहुत चिंतित होकर शिव के पास पहुंचे। उन्होंने कहा कि पुरुषत्व के अतिरिक्त वे कुछ भी मांग लें। हताश होकर वे लोग पार्वती के पास पहुंचे, क्योंकि वे आधे कर्मों की स्वामिनी थीं। पार्वती ने उन्हें एक मास स्त्री और दूसरे मास पुरुष रूप में रहने का वर दिया। स्त्री का रूप पाकर वे पुरुष की बातें भुल जाते थे। उन सुंदरियों को मार्ग में तपस्यारत चन्द्र पुत्र बुध मिले। बुध इल, जो स्त्री रूप में 'इला' कहलाते थे, पर आसक्त हो गये। शेष सुंदरियों के लिए 'कि पुरुषी' जाति के रूप में वहीं रहने की व्यवस्था करके बुध ने इला से विवाह कर लिया। इला के स्त्री-पुरुष रूप धारण करने का क्रम चलता रहा, किंतु साथ ही उसने कालांतर में बुध के पुत्र पुरुरवा को जन्म दिया। तदनंतर बुध के पुत्र ने ब्राह्मणों को बुलाकर अश्वमेध यज्ञ करवाया, जिससे प्रसंन्न होकर शंकर ने इला को पुन: पुरुष (इल) बना दिया। अपना भूतपूर्व नगर वाह्लीक अपने पुत्र शशबिंदु को सौपकर राजा इल ने 'प्रतिष्ठानपुर' बसाया। ब्रह्मलोक जाते हुए उन्होंने प्रतिष्ठानपुर पुरुरवा को सौप दिया

  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 540 |

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