छीहल: Difference between revisions
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<poem>देख्या नगर सुहावना, अधिक सुचंगा थानु। | <poem>देख्या नगर सुहावना, अधिक सुचंगा थानु। | ||
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Latest revision as of 07:07, 11 May 2011
- छीहल भक्ति काल के कवि थे।
- संवत 1575 में इन्होंने 'पंचसहेली' नाम की एक छोटी सी पुस्तक दोहों में राजस्थानी भाषा में बनाई जो कविता की दृष्टि से अच्छी नहीं कही जा सकती। इसमें पाँच सखियों की विरह वेदना का वर्णन है। दोहे इस ढंग के हैं
देख्या नगर सुहावना, अधिक सुचंगा थानु।
नाउँ चँदेरी परगटा, जनु सुरलोक समानु
ठाईं ठाईं सरवर पेखिय, सूभर भरे निवाण।
ठाईं ठाईं कुवाँ बावरी, सोहइ फटिक सवाँण
पंद्रह सै पचहत्तारै, पूनिम फागुण मास।
पंचसहेली वर्णई, कवि छीहल परगास
- इनकी लिखी एक 'बावनी' भी है जिसमें 52 दोहे हैं।
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