पढ़क्‍कू की सूझ -रामधारी सिंह दिनकर: Difference between revisions

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Latest revision as of 14:08, 6 March 2012

पढ़क्‍कू की सूझ -रामधारी सिंह दिनकर
कवि रामधारी सिंह दिनकर
जन्म 23 सितंबर, सन् 1908
जन्म स्थान सिमरिया, ज़िला मुंगेर (बिहार)
मृत्यु 24 अप्रैल, सन् 1974
मृत्यु स्थान चेन्नई, तमिलनाडु
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
रामधारी सिंह दिनकर की रचनाएँ

एक पढ़क्‍कू बड़े तेज थे, तर्कशास्‍त्र पढ़ते थे,
जहाँ न कोई बात, वहाँ भी नई बात गढ़ते थे।

एक रोज़ वे पड़े फ़िक्र में समझ नहीं कुछ न पाए,
"बैल घूमता है कोल्‍हू में कैसे बिना चलाए?"

कई दिनों तक रहे सोचते, मालिक बड़ा गज़ब है?
सिखा बैल को रक्‍खा इसने, निश्‍चय कोई ढब है।

आखिर, एक रोज़ मालिक से पूछा उसने ऐसे,
"अजी, बिना देखे, लेते तुम जान भेद यह कैसे?

कोल्‍हू का यह बैल तुम्‍हारा चलता या अड़ता है?
रहता है घूमता, खड़ा हो या पागुर करता है?"

मालिक ने यह कहा, "अजी, इसमें क्‍या बात बड़ी है?
नहीं देखते क्‍या, गर्दन में घंटी एक पड़ी है?

जब तक यह बजती रहती है, मैं न फ़िक्र करता हूँ,
हाँ, जब बजती नहीं, दौड़कर तनिक पूँछ धरता हूँ"

कहाँ पढ़क्‍कू ने सुनकर, "तुम रहे सदा के कोरे!
बेवकूफ! मंतिख की बातें समझ सकोगे थोड़ी!

अगर किसी दिन बैल तुम्‍हारा सोच-समझ अड़ जाए,
चले नहीं, बस, खड़ा-खड़ा गर्दन को खूब हिलाए।

घंटी टन-टन खूब बजेगी, तुम न पास आओगे,
मगर बूँद भर तेल साँझ तक भी क्‍या तुम पाओगे?

मालिक थोड़ा हँसा और बोला पढ़क्‍कू जाओ,
सीखा है यह ज्ञान जहाँ पर, वहीं इसे फैलाओ।

यहाँ सभी कुछ ठीक-ठीक है, यह केवल माया है,
बैल हमारा नहीं अभी तक मंतिख पढ़ पाया है।

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