एक विलुप्त कविता -रामधारी सिंह दिनकर: Difference between revisions
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कहता धनी कुबेर किन्तु क्या आती तुम्हें शरम है? | कहता धनी कुबेर किन्तु क्या आती तुम्हें शरम है? | ||
आग लगे उस धन में जो दुखियों के काम न आए, | आग लगे उस धन में जो दुखियों के काम न आए, | ||
लाख लानत जिनका, फटता | लाख लानत जिनका, फटता नहीं मरम है। | ||
दुह-दुह कर जाती गाय की निजतन धन तुम पा लो | दुह-दुह कर जाती गाय की निजतन धन तुम पा लो |
Latest revision as of 12:47, 2 September 2013
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बरसों बाद मिले तुम हमको आओ जरा विचारें, |
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