मनुष्यता -मैथिलीशरण गुप्त: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
आदित्य चौधरी (talk | contribs) m (Text replace - "अविभावक" to "अभिभावक") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - "पुरूष" to "पुरुष") |
||
(One intermediate revision by the same user not shown) | |||
Line 48: | Line 48: | ||
सहानुभूति चाहिए¸ महाविभूति है वही; | सहानुभूति चाहिए¸ महाविभूति है वही; | ||
वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही। | वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही। | ||
विरुद्धवाद बुद्ध का दया–प्रवाह में बहा¸ | |||
विनीत लोक वर्ग क्या न सामने झुका रहे? | विनीत लोक वर्ग क्या न सामने झुका रहे? | ||
अहा! वही उदार है परोपकार जो करे¸ | अहा! वही उदार है परोपकार जो करे¸ | ||
Line 61: | Line 61: | ||
"मनुष्य मात्र बन्धु है" यही बड़ा विवेक है¸ | "मनुष्य मात्र बन्धु है" यही बड़ा विवेक है¸ | ||
पुराणपुरुष स्वयंभू पिता प्रसिद्ध एक है। | |||
फलानुसार कर्म के अवश्य बाह्य भेद है¸ | फलानुसार कर्म के अवश्य बाह्य भेद है¸ | ||
परंतु अंतरैक्य में प्रमाणभूत वेद हैं। | परंतु अंतरैक्य में प्रमाणभूत वेद हैं। |
Latest revision as of 07:40, 3 January 2016
चित्र:Icon-edit.gif | इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव" |
| ||||||||||||||||||
|
विचार लो कि मत्र्य हो न मृत्यु से डरो कभी¸ |
संबंधित लेख |