जनतन्त्र का जन्म -रामधारी सिंह दिनकर: Difference between revisions
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यह और नहीं कोई, जनता के स्वप्न अजय | यह और नहीं कोई, जनता के स्वप्न अजय | ||
चीरते तिमिर का वक्ष उमड़ते जाते हैं। | चीरते तिमिर का वक्ष उमड़ते जाते हैं। | ||
सब से विराट जनतंत्र | सब से विराट जनतंत्र जगत् का आ पहुंचा, | ||
तैंतीस कोटि - हित सिंहासन तय करो | तैंतीस कोटि - हित सिंहासन तय करो | ||
अभिषेक आज राजा का नहीं, प्रजा का है, | अभिषेक आज राजा का नहीं, प्रजा का है, |
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सदियों की ठंडी - बुझी राख सुगबुगा उठी, |
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