जनतन्त्र का जन्म -रामधारी सिंह दिनकर: Difference between revisions
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यह और नहीं कोई, जनता के स्वप्न अजय | यह और नहीं कोई, जनता के स्वप्न अजय | ||
चीरते तिमिर का वक्ष उमड़ते जाते हैं। | चीरते तिमिर का वक्ष उमड़ते जाते हैं। | ||
सब से विराट जनतंत्र | सब से विराट जनतंत्र जगत् का आ पहुंचा, | ||
तैंतीस कोटि - हित सिंहासन तय करो | तैंतीस कोटि - हित सिंहासन तय करो | ||
अभिषेक आज राजा का नहीं, प्रजा का है, | अभिषेक आज राजा का नहीं, प्रजा का है, | ||
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देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में। | देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में। | ||
फावड़े और हल राजदण्ड बनने को हैं, | फावड़े और हल राजदण्ड बनने को हैं, | ||
धूसरता सोने से | धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है; | ||
दो राह, समय के रथ का घर्घर - नाद सुनो, | दो राह, समय के रथ का घर्घर - नाद सुनो, | ||
सिंहासन ख़ाली करो कि जनता आती है। | सिंहासन ख़ाली करो कि जनता आती है। |
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सदियों की ठंडी - बुझी राख सुगबुगा उठी, |
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