इन्द्राणी: Difference between revisions

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'''इन्द्राणी''' [[इन्द्र]] की पत्नी, जो प्राय: [[शची]] अथवा [[पौलोमी]] भी कही गयी है। यह [[असुर]] पुलोमा की पुत्री थी, जिसका वध इन्द्र ने किया था।  
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*शाक्त मत में सर्वप्रथम मातृ की पूजा होती है। ये माताएँ विश्वजननी हैं, जिनका देवस्त्रियों के रूप में मानवीकरण हुआ है।
==कार्यक्षेत्र==
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Latest revision as of 07:48, 7 November 2017

इन्द्राणी देवताओं के राजा इन्द्र की पत्नी हैं। इनके दूसरे नाम 'शची' और 'पौलोमी' भी हैं। इन्द्राणी असुर पुलोमा की पुत्री थीं, जिनका वध इन्द्र के हाथों हुआ था। ऋग्वेद की देवियों में इन्द्राणी का स्थान प्रधान हैं। ये इन्द्र को शक्ति प्रदान करने वाली और स्वयं अनेक ऋचाओं की ऋषि है। शालीन पत्नी की यह मर्यादा और आदर्श हैं और गृह की सीमाओं में उसकी अधिष्ठात्री हैं।

कार्यक्षेत्र

अपने कार्य क्षेत्र में इन्द्राणी विजयिनी और सर्वस्वामिनी हैं और अपनी शक्ति की घोषणा वह ऋग्वेद के मंत्र[1] में इस प्रकार करती हैं-

'अहं केतुरंह मूर्धा अहमुग्राविवाचिनी'।

अर्थात् "मैं ही विजयिनी ध्वजा हूँ, मैं ही ऊँचाई की चोटी हूँ, मैं ही अनुल्लंघनीय शासन करने वाली हूँ।"

  • ऋग्वेद के एक अत्यन्त सुन्दर और 'शक्तिसूक्त'[2] में वह कहती हैं कि "मैं असपत्नी हूँ, सपत्नियों का नाश करने वाली हूँ, उनकी नश्यमान शालीनता के लिए ग्रहण स्वरूप हूँ, उन सपत्नियों के लिए, जिन्होंने मुझे कभी ग्रसना चाहा था।" उसी सूक्त में वह कहती हैं कि "मेरे पुत्र शत्रुहंता हैं और मेरी कन्या महती है"- 'मम पुत्रा: शत्रुहणोऽथो मम दुहिता विराट्।'

विविध रूप

शाक्तमत में सर्वप्रथम मातृ की पूजा होती है। ये माताएँ विश्वजननी हैं, जिनका देवस्त्रियों के रूप में मानवीकरण हुआ है। इसका दूसरा अभिप्राय शक्ति के विविध रूपों से भी हो सकता है, जो आठ हैं तथा विभिन्न देवताओं से सम्बन्धित हैं। 'वैष्णवी' या लक्ष्मी का विष्णु से, 'ब्राह्मी' या ब्रह्माणी का ब्रह्मा से, 'कार्तिकेयी' का युद्ध के देवता कार्तिकेय से, 'इन्द्राणी' का इन्द्र से, 'यमी' का मृत्यु के देवता यम से, 'वाराही' का वराह से, देवी व ईशानी का शिव से सम्बन्ध स्थापित है। इस प्रकार इन्द्राणी अष्टमातृकाओं में से भी एक है। अमरकोश में सप्त मातृकाओं का[3] उल्लेख है:

ब्राह्मी माहेश्वरी चैव कौमारी वैष्णवी तथा।
वाराही च तथेन्द्राणी चामुण्डा सप्तमातर:॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऋग्वेद- 10, 159, 2
  2. शक्तिसूक्त 10, 159
  3. ब्राह्मीत्याद्याऽस्तु मातर:

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