उपरिचर: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
(''''उपरिचर''' पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार एक [[चन्द्र...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
'''उपरिचर''' पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार एक [[चन्द्रवंश|चन्द्रवंशी]] राजा थे, जो [[च्यवन]] के पौत्र और कृती<ref>विष्णुपुराण के अनुसार 'कृतक'</ref> के पुत्र थे। यह एक [[ | '''उपरिचर''' पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार एक [[चन्द्रवंश|चन्द्रवंशी]] राजा थे, जो [[च्यवन]] के पौत्र और चंद्रवंशी सुधन्वा की शाखा में उत्पन्न कृती<ref>[[विष्णुपुराण]] के अनुसार 'कृतक'</ref> के पुत्र थे। इनका वास्तविक नाम [[वसु]] था और उपरिचर इनकी उपाधि थी। इन्हें मृगया का व्यसन था, लेकिन बाद में यह व्यसन छूट गया और ये तपश्चर्या के प्रति विशेष अनुरक्त हो गए। इंद्र की आज्ञा से इन्होंने [[चेदि |चेदि]] देश पर विजय प्राप्त की जिससे प्रसन्न हो [[इंद्र]] ने इन्हें [[स्फटिक]] से बना विमान और [[वैजयंती माला]] उपहार में दी। ये सदा उक्त विमान में बैठकर [[आकाश]] में विचरण करते रहे थे इसलिए इन्हें [[उपरिचर]] कहा जाने लगा। इंद्रमाला धारण करने के कारण इन्हें इंद्रमाली नाम भी प्राप्त है। उपरिचर के पाँच पुत्र थे। | ||
*[[शुक्तिमती नदी]] को कोलाहल नमक [[पर्वत]] रोक रहा है, यह देखकर इन्होंने पाद प्रहार से पर्वत में विवर बना दिया। शुक्तिमती उस विवर से बहने लगी और पर्वत के संयोग से उसे एक पुत्र तथा एक पुत्री प्राप्त हुई जिन्हें उसने उपरिचर को दे दिया। | |||
*पुत्र को राजा ने अपना सेनापति बनाया और [[गिरिका |गिरिका]] नाम की उस कन्या के साथ विवाह कर लिया। | |||
*गिरिका ऋतुमती हुई तो पितरों की आज्ञा से राजा मृगया हेतु वन में चले गए। परंतु पत्नी की याद आते ही वहाँ उनका रेत स्खलित हो गया जिसे उन्होंने एक श्येन के द्वारा अपनती पत्नी के पास भेजा। लकिन मार्ग में एक अन्य श्येन के झपटने से उक्त रेत यमुना में गिरा और उससे मत्स्यरूपा अद्रिका आपन्नसत्वा हुई। | |||
*अद्रिका धीवर द्वारा पकड़ी गई और चीरने पर उसके पेट से एक पुत्र तथा एक पुत्री मिली जिन्हें राजा को दे दिया गया। | |||
*मत्स्य नामक पुत्र को राजा ने अपने पास रखा और कन्या धीवर को लौटा दी।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=121 |url=}}</ref> | |||
*यही कन्या [[मत्स्यगंधा]] ([[सत्यवती]]) के नाम से प्रसिद्ध हुई और इसी से [[वेदव्यास]] का जन्म हुआ। तथा [[हस्तिनापुर]] नरेश [[शांतनु]] से इनका [[विवाह]] हुआ था।<ref>[[महाभारत]], [[आदिपर्व महाभारत|आदिपर्व]] 63.1-11</ref> | |||
*पहले उपरिचर मृगया प्रेमी थे, किंतु बाद में तप करने लगे। | |||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
Line 11: | Line 17: | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{पौराणिक चरित्र}} | {{पौराणिक चरित्र}} | ||
[[Category:पौराणिक चरित्र]][[Category:पौराणिक कोश]][[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]] | [[Category:पौराणिक चरित्र]][[Category:पौराणिक कोश]][[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]][[Category:हिन्दी विश्वकोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Latest revision as of 06:17, 7 July 2018
उपरिचर पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार एक चन्द्रवंशी राजा थे, जो च्यवन के पौत्र और चंद्रवंशी सुधन्वा की शाखा में उत्पन्न कृती[1] के पुत्र थे। इनका वास्तविक नाम वसु था और उपरिचर इनकी उपाधि थी। इन्हें मृगया का व्यसन था, लेकिन बाद में यह व्यसन छूट गया और ये तपश्चर्या के प्रति विशेष अनुरक्त हो गए। इंद्र की आज्ञा से इन्होंने चेदि देश पर विजय प्राप्त की जिससे प्रसन्न हो इंद्र ने इन्हें स्फटिक से बना विमान और वैजयंती माला उपहार में दी। ये सदा उक्त विमान में बैठकर आकाश में विचरण करते रहे थे इसलिए इन्हें उपरिचर कहा जाने लगा। इंद्रमाला धारण करने के कारण इन्हें इंद्रमाली नाम भी प्राप्त है। उपरिचर के पाँच पुत्र थे।
- शुक्तिमती नदी को कोलाहल नमक पर्वत रोक रहा है, यह देखकर इन्होंने पाद प्रहार से पर्वत में विवर बना दिया। शुक्तिमती उस विवर से बहने लगी और पर्वत के संयोग से उसे एक पुत्र तथा एक पुत्री प्राप्त हुई जिन्हें उसने उपरिचर को दे दिया।
- पुत्र को राजा ने अपना सेनापति बनाया और गिरिका नाम की उस कन्या के साथ विवाह कर लिया।
- गिरिका ऋतुमती हुई तो पितरों की आज्ञा से राजा मृगया हेतु वन में चले गए। परंतु पत्नी की याद आते ही वहाँ उनका रेत स्खलित हो गया जिसे उन्होंने एक श्येन के द्वारा अपनती पत्नी के पास भेजा। लकिन मार्ग में एक अन्य श्येन के झपटने से उक्त रेत यमुना में गिरा और उससे मत्स्यरूपा अद्रिका आपन्नसत्वा हुई।
- अद्रिका धीवर द्वारा पकड़ी गई और चीरने पर उसके पेट से एक पुत्र तथा एक पुत्री मिली जिन्हें राजा को दे दिया गया।
- मत्स्य नामक पुत्र को राजा ने अपने पास रखा और कन्या धीवर को लौटा दी।[2]
- यही कन्या मत्स्यगंधा (सत्यवती) के नाम से प्रसिद्ध हुई और इसी से वेदव्यास का जन्म हुआ। तथा हस्तिनापुर नरेश शांतनु से इनका विवाह हुआ था।[3]
- पहले उपरिचर मृगया प्रेमी थे, किंतु बाद में तप करने लगे।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
पौराणिक कोश |लेखक: राणाप्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, आज भवन, संत कबीर मार्ग, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 59 |