जब यह दीप थके -महादेवी वर्मा: Difference between revisions

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<poem>जब यह दीप थके
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महादेवी वर्मा
जब यह दीप थके तब आना।
जब यह दीप थके तब आना।


यह चंचल सपने भोले है,
यह चंचल सपने भोले हैं,
दृग-जल पर पाले मैने, मृदु
दृग-जल पर पाले मैने, मृदु
पलकों पर तोले हैं;
पलकों पर तोले हैं;
दे सौरभ के पंख इन्हें सब नयनों मे पहुँचाना!
दे सौरभ के पंख इन्हें सब नयनों में पहुँचाना!


साधें करुणा-अंक ढली है,
साधें करुणा - अंक ढली है,
सान्ध्य गगन-सी रंगमयी पर
सान्ध्य गगन - सी रंगमयी पर
पावस की सजला बदली है;
पावस की सजला बदली है;
विद्युत के दे चरण इन्हें उर-उर की राह बताना!
विद्युत के दे चरण इन्हें उर-उर की राह बताना!


यह उड़ते क्षण पुलक-भरे है,
यह उड़ते क्षण पुलक - भरे है,
सुधि से सुरभित स्नेह-धुले,
सुधि से सुरभित स्नेह - धुले,
ज्वाला के चुम्बन से निखरे है;
ज्वाला के चुम्बन से निखरे है;
दे तारो के प्राण इन्ही से सूने श्वास बसाना!
दे तारो के प्राण इन्हीं से सूने श्वास बसाना!


यह स्पन्दन है अंक-व्यथा के
यह स्पन्दन हैं अंक - व्यथा के
चिर उज्जवल अक्षर जीवन की
चिर उज्ज्वल अक्षर जीवन की
बिखरी विस्मृत क्षार-कथा के;
बिखरी विस्मृत क्षार - कथा के;
कण का चल इतिहास इन्हीं से लिख-लिख अजर बनाना!
कण का चल इतिहास इन्हीं से लिख - लिख अजर बनाना!


लौ ने वर्ती को जाना है
लौ ने वर्ती को जाना है
वर्ती ने यह स्नेह, स्नेह ने
वर्ती ने यह स्नेह, स्नेह ने
रज का अंचल पहचाना है;
रज का अंचल पहचाना है;
चिर बन्धन में बाँध इन्हें धुलने का वर दे जाना! </poem>
चिर बन्धन में बाँध इन्हें धुलने का वर दे जाना!  
</poem>
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Latest revision as of 10:43, 9 February 2021

जब यह दीप थके -महादेवी वर्मा
कवि महादेवी वर्मा
जन्म 26 मार्च, 1907
जन्म स्थान फ़र्रुख़ाबाद, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 22 सितम्बर, 1987
मृत्यु स्थान प्रयाग, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ मेरा परिवार, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी, श्रृंखला की कड़ियाँ, अतीत के चलचित्र, नीरजा, नीहार
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
महादेवी वर्मा की रचनाएँ

जब यह दीप थके तब आना।

यह चंचल सपने भोले हैं,
दृग-जल पर पाले मैने, मृदु
पलकों पर तोले हैं;
दे सौरभ के पंख इन्हें सब नयनों में पहुँचाना!

साधें करुणा - अंक ढली है,
सान्ध्य गगन - सी रंगमयी पर
पावस की सजला बदली है;
विद्युत के दे चरण इन्हें उर-उर की राह बताना!

यह उड़ते क्षण पुलक - भरे है,
सुधि से सुरभित स्नेह - धुले,
ज्वाला के चुम्बन से निखरे है;
दे तारो के प्राण इन्हीं से सूने श्वास बसाना!

यह स्पन्दन हैं अंक - व्यथा के
चिर उज्ज्वल अक्षर जीवन की
बिखरी विस्मृत क्षार - कथा के;
कण का चल इतिहास इन्हीं से लिख - लिख अजर बनाना!

लौ ने वर्ती को जाना है
वर्ती ने यह स्नेह, स्नेह ने
रज का अंचल पहचाना है;
चिर बन्धन में बाँध इन्हें धुलने का वर दे जाना!

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