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*उत्पल तथा विदल नाम के दो दैत्य अत्यन्त बलवान थे। उन्होंने [[ब्रह्मा]] से वर प्राप्त किया था कि उन्हें कोई मनुष्य मार नहीं पायेगा। उनके अनाचार से दु:खी होकर [[नारद]] ने एक युक्ति सोची।  
*उत्पल तथा विदल नाम के दो [[दैत्य]] अत्यन्त बलवान थे। उन्होंने [[ब्रह्मा]] से वर प्राप्त किया था कि उन्हें कोई मनुष्य मार नहीं पायेगा। उनके अनाचार से दु:खी होकर [[नारद]] ने एक युक्ति सोची।  
*नारद ने उत्पल तथा विदल के सम्मुख गिरिजा के सौंदर्य की प्रशंसा की। उत्पल तथा विदल दैत्य गिरिजा को प्राप्त करने के लिए कटिबद्ध हो गये।  
*नारद ने उत्पल तथा विदल के सम्मुख गिरिजा के सौंदर्य की प्रशंसा की। उत्पल तथा विदल दैत्य गिरिजा को प्राप्त करने के लिए कटिबद्ध हो गये।  
*एक बार गिरिजा सखियों के साथ गेंद खेल रही थी। उत्पल तथा विदल दोनों विमान से उतरकर उसका अपहरण करने के लिए उद्यत हुए तभी [[शिव]] का संकेत पाकर गिरिजा ने दोनों पर गेंद फेंकी। वे गेंद को पकड़ते एवं घूमते-घूमते [[पृथ्वी]] पर जा गिरे। जहाँ उत्पल तथा विदल दैत्य गिरे थे उसी स्थान पर कुंडलेश लिंग की स्थापना की गई।
*एक बार गिरिजा सखियों के साथ गेंद खेल रही थी। उत्पल तथा विदल दोनों विमान से उतरकर उसका अपहरण करने के लिए उद्यत हुए तभी [[शिव]] का संकेत पाकर गिरिजा ने दोनों पर गेंद फेंकी। वे गेंद को पकड़ते एवं घूमते-घूमते [[पृथ्वी]] पर जा गिरे। जहाँ उत्पल तथा विदल दैत्य गिरे थे उसी स्थान पर कुंडलेश लिंग की स्थापना की गई।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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Latest revision as of 08:42, 15 April 2012

  • उत्पल तथा विदल नाम के दो दैत्य अत्यन्त बलवान थे। उन्होंने ब्रह्मा से वर प्राप्त किया था कि उन्हें कोई मनुष्य मार नहीं पायेगा। उनके अनाचार से दु:खी होकर नारद ने एक युक्ति सोची।
  • नारद ने उत्पल तथा विदल के सम्मुख गिरिजा के सौंदर्य की प्रशंसा की। उत्पल तथा विदल दैत्य गिरिजा को प्राप्त करने के लिए कटिबद्ध हो गये।
  • एक बार गिरिजा सखियों के साथ गेंद खेल रही थी। उत्पल तथा विदल दोनों विमान से उतरकर उसका अपहरण करने के लिए उद्यत हुए तभी शिव का संकेत पाकर गिरिजा ने दोनों पर गेंद फेंकी। वे गेंद को पकड़ते एवं घूमते-घूमते पृथ्वी पर जा गिरे। जहाँ उत्पल तथा विदल दैत्य गिरे थे उसी स्थान पर कुंडलेश लिंग की स्थापना की गई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

विद्यावाचस्पति, डॉ. उषा पुरी भारतीय मिथक कोश (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नयी दिल्ली, पृष्ठ सं 35।


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