शिवसहाय दास: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
('*शिवसहाय दास जयपुर के रहने वाले थे। *इन्होंने संवत 1...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "Category:रीति काल" to "Category:रीति कालCategory:रीतिकालीन कवि") |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
*शिवसहाय दास [[जयपुर]] के रहने वाले थे। | *[[रीति काल]] के कवि शिवसहाय दास [[जयपुर]] के रहने वाले थे। | ||
*इन्होंने संवत 1809 में 'शिव चौपाई' और 'लोकोक्ति रस कौमुदी' दो ग्रंथ बनाए। | *इन्होंने संवत 1809 में 'शिव चौपाई' और 'लोकोक्ति रस कौमुदी' दो ग्रंथ बनाए। | ||
*'लोकोक्ति रस कौमुदी' में विचित्रता यह है कि कहावतों को लेकर नायिका भेद कहा गया है - | *'लोकोक्ति रस कौमुदी' में विचित्रता यह है कि कहावतों को लेकर नायिका भेद कहा गया है - | ||
<poem>करौ रुखाई नाहिंन बाम। बेगिहिं लै आऊँ घनस्याम | <blockquote><poem>करौ रुखाई नाहिंन बाम। बेगिहिं लै आऊँ घनस्याम | ||
कहै पखानो भरि अनुराग। बाजी ताँत की बूझ्यो राग | कहै पखानो भरि अनुराग। बाजी ताँत की बूझ्यो राग | ||
बोलै निठुर पिया बिनु दोस। आपुहि तिय बैठी गहि रोस | बोलै निठुर पिया बिनु दोस। आपुहि तिय बैठी गहि रोस | ||
कहै पखानो जेहि गहि मोन। बैल न कूद्यौ, कूदी गोन | कहै पखानो जेहि गहि मोन। बैल न कूद्यौ, कूदी गोन</poem></blockquote> | ||
</poem> | |||
{{प्रचार}} | {{प्रचार}} | ||
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}} | {{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}} | ||
Line 15: | Line 15: | ||
==सम्बंधित लेख== | ==सम्बंधित लेख== | ||
{{भारत के कवि}} | {{भारत के कवि}} | ||
[[Category:रीति काल]][[Category: | [[Category:रीति काल]][[Category:रीतिकालीन कवि]] | ||
[[Category:कवि]][[Category:साहित्य_कोश]] | [[Category:कवि]][[Category:साहित्य_कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Latest revision as of 09:47, 14 October 2011
- रीति काल के कवि शिवसहाय दास जयपुर के रहने वाले थे।
- इन्होंने संवत 1809 में 'शिव चौपाई' और 'लोकोक्ति रस कौमुदी' दो ग्रंथ बनाए।
- 'लोकोक्ति रस कौमुदी' में विचित्रता यह है कि कहावतों को लेकर नायिका भेद कहा गया है -
करौ रुखाई नाहिंन बाम। बेगिहिं लै आऊँ घनस्याम
कहै पखानो भरि अनुराग। बाजी ताँत की बूझ्यो राग
बोलै निठुर पिया बिनु दोस। आपुहि तिय बैठी गहि रोस
कहै पखानो जेहि गहि मोन। बैल न कूद्यौ, कूदी गोन
|
|
|
|
|