महाराज विश्वनाथ सिंह: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
('महाराज विश्वनाथ सिंह 'रीवाँ' के बड़े ही विद्यारसिक औ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
||
(2 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
महाराज विश्वनाथ सिंह 'रीवाँ' के बड़े ही विद्यारसिक और भक्त नरेश तथा प्रसिद्ध कवि 'महाराज रघुराजसिंह' के पिता थे। आप [[संवत्]] 1778 से लेकर 1797 तक रीवाँ की गद्दी पर रहे। ये जैसे भक्त थे वैसे ही विद्याव्यसनी तथा कवियों और विद्वानों के आश्रयदाता थे। काव्य रचना में भी ये सिद्ध हस्त थे। यह ठीक है कि इनके नाम से प्रख्यात बहुत से ग्रंथ दूसरे कवियों के रचे हैं पर इनकी रचनाएँ भी कम नहीं हैं। नीचे इनकी बनाई पुस्तकों के नाम दिए जाते हैं जिनसे विदित होगा कि कितने विषयों पर इन्होंने लिखा है - | '''महाराज विश्वनाथ सिंह''' '[[रीवा|रीवाँ]]' के बड़े ही विद्यारसिक और भक्त नरेश तथा प्रसिद्ध कवि 'महाराज रघुराजसिंह' के पिता थे। आप [[संवत्]] 1778 से लेकर 1797 तक रीवाँ की गद्दी पर रहे। ये जैसे भक्त थे वैसे ही विद्याव्यसनी तथा कवियों और विद्वानों के आश्रयदाता थे। काव्य रचना में भी ये सिद्ध हस्त थे। | ||
(1) अष्टयाम आह्निक, (2) आनंदरघुनंदन (नाटक), (3) उत्तमकाव्यप्रकाश, (4) गीतारघुनंदन शतिका, (5) रामायण, (6) गीता रघुनंदन प्रामाणिक, (7) सर्वसंग्रह, (8) कबीर बीजक की टीका, (9) विनयपत्रिका की टीका, (10) रामचंद्र की सवारी, (11) भजन, (12) पदार्थ, (13) धानुर्विद्या, (14) आनंद रामायण, (15) परधर्म निर्णय, (16) शांतिशतक, (17) वेदांत पंचकशतिका, (18) गीतावली पूर्वार्ध्द, (19) धा्रुवाष्टक, (20) उत्तम नीतिचंद्रिका, (21) अबोधनीति, (22) पाखंड खंडिका, (23) आदिमंगल, (24) बसंत चौंतीसी, (25) चौरासी रमैनी, (26) ककहरा, (27) शब्द, | ==रचनाएँ== | ||
यह ठीक है कि इनके नाम से प्रख्यात बहुत से ग्रंथ दूसरे कवियों के रचे हैं पर इनकी रचनाएँ भी कम नहीं हैं। नीचे इनकी बनाई पुस्तकों के नाम दिए जाते हैं जिनसे विदित होगा कि कितने विषयों पर इन्होंने लिखा है - | |||
(1) अष्टयाम आह्निक, (2) [[आनंदरघुनंदन]] (नाटक), (3) उत्तमकाव्यप्रकाश, (4) गीतारघुनंदन शतिका, (5) रामायण, (6) गीता रघुनंदन प्रामाणिक, (7) सर्वसंग्रह, (8) कबीर बीजक की टीका, (9) विनयपत्रिका की टीका, (10) रामचंद्र की सवारी, (11) भजन, (12) पदार्थ, (13) धानुर्विद्या, (14) आनंद रामायण, (15) परधर्म निर्णय, (16) शांतिशतक, (17) वेदांत पंचकशतिका, (18) गीतावली पूर्वार्ध्द, (19) धा्रुवाष्टक, (20) उत्तम नीतिचंद्रिका, (21) अबोधनीति, (22) पाखंड खंडिका, (23) आदिमंगल, (24) बसंत चौंतीसी, (25) चौरासी रमैनी, (26) ककहरा, (27) शब्द, | |||
(28) विश्वभोजनप्रसाद, (29) ध्यान मंजरी, (30) विश्वनाथ प्रकाश, (31) परमतत्व, (32) संगीत रघुनंदन इत्यादि। | (28) विश्वभोजनप्रसाद, (29) ध्यान मंजरी, (30) विश्वनाथ प्रकाश, (31) परमतत्व, (32) संगीत रघुनंदन इत्यादि। | ||
====रामोपासक==== | |||
यद्यपि ये रामोपासक थे, पर कुलपरंपरा के अनुसार निर्गुणसंत मत की बानी का भी आदर करते थे। [[कबीरदास]] के शिष्य [[धर्मदास]] का बांधव नरेश के यहाँ जाकर उपदेश सुनाना परंपरा से प्रसिद्ध है। 'ककहरा', 'शब्द', 'रमैनी' आदि उसी प्रभाव के द्योतक हैं। पर इनकी साहित्यिक रचना प्रधानत: 'रामचरित' संबंधी है। 'कबीर बीजक की टीका' इन्होंने निर्गुण ब्रह्म के स्थान पर सगुण [[राम]] पर घटाई है। [[ब्रजभाषा]] में नाटक पहले पहल इन्होंने लिखा। इस दृष्टि से इनका 'आनंदरघुनंदन नाटक' विशेष महत्व की वस्तु है। [[भारतेंदु हरिश्चंद्र]] ने इसे [[हिन्दी]] का '''प्रथम नाटक''' माना है। यद्यपि इसमें पद्यों की प्रचुरता है, पर संवाद सब ब्रजभाषा गद्य में है, अंकविधान और पात्रविधान भी है। '''हिन्दी के प्रथम नाटककार के रूप में ये चिरस्मरणीय हैं।''' | यद्यपि ये रामोपासक थे, पर कुलपरंपरा के अनुसार निर्गुणसंत मत की बानी का भी आदर करते थे। [[कबीरदास]] के शिष्य [[धर्मदास]] का बांधव नरेश के यहाँ जाकर उपदेश सुनाना परंपरा से प्रसिद्ध है। 'ककहरा', 'शब्द', 'रमैनी' आदि उसी प्रभाव के द्योतक हैं। पर इनकी साहित्यिक रचना प्रधानत: 'रामचरित' संबंधी है। 'कबीर बीजक की टीका' इन्होंने निर्गुण ब्रह्म के स्थान पर सगुण [[राम]] पर घटाई है। [[ब्रजभाषा]] में नाटक पहले पहल इन्होंने लिखा। इस दृष्टि से इनका 'आनंदरघुनंदन नाटक' विशेष महत्व की वस्तु है। [[भारतेंदु हरिश्चंद्र]] ने इसे [[हिन्दी]] का '''प्रथम नाटक''' माना है। यद्यपि इसमें पद्यों की प्रचुरता है, पर संवाद सब ब्रजभाषा गद्य में है, अंकविधान और पात्रविधान भी है। '''हिन्दी के प्रथम नाटककार के रूप में ये चिरस्मरणीय हैं।''' | ||
==भाषा== | |||
इनकी कविता अधिकतर या तो वर्णनात्मक है अथवा उपदेशात्मक। [[भाषा]] स्पष्ट और परिमार्जित है। - | इनकी कविता अधिकतर या तो वर्णनात्मक है अथवा उपदेशात्मक। [[भाषा]] स्पष्ट और परिमार्जित है। - | ||
<poem>भाइन भृत्यन विष्णु सो रैयत, भानु सो सत्रुन काल सो भावै। | <poem>भाइन भृत्यन विष्णु सो रैयत, भानु सो सत्रुन काल सो भावै। | ||
Line 31: | Line 33: | ||
{{लेख प्रगति|आधार= | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
{{cite book | last =आचार्य| first =रामचंद्र शुक्ल| title =हिन्दी साहित्य का इतिहास| edition =| publisher =कमल प्रकाशन, नई दिल्ली| location =भारतडिस्कवरी पुस्तकालय | language =हिन्दी | pages =पृष्ठ सं. 238-39| chapter =प्रकरण 3}} | {{cite book | last =आचार्य| first =रामचंद्र शुक्ल| title =हिन्दी साहित्य का इतिहास| edition =| publisher =कमल प्रकाशन, नई दिल्ली| location =भारतडिस्कवरी पुस्तकालय | language =हिन्दी | pages =पृष्ठ सं. 238-39| chapter =प्रकरण 3}} | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{भारत के कवि}} | {{भारत के कवि}} | ||
[[Category:कवि]] | [[Category:कवि]] | ||
[[Category: | [[Category:रीति काल]] | ||
[[Category: | [[Category:रीतिकालीन कवि]] | ||
[[Category:चरित कोश]] | |||
[[Category:साहित्य कोश]] | [[Category:साहित्य कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
Latest revision as of 09:10, 5 May 2015
महाराज विश्वनाथ सिंह 'रीवाँ' के बड़े ही विद्यारसिक और भक्त नरेश तथा प्रसिद्ध कवि 'महाराज रघुराजसिंह' के पिता थे। आप संवत् 1778 से लेकर 1797 तक रीवाँ की गद्दी पर रहे। ये जैसे भक्त थे वैसे ही विद्याव्यसनी तथा कवियों और विद्वानों के आश्रयदाता थे। काव्य रचना में भी ये सिद्ध हस्त थे।
रचनाएँ
यह ठीक है कि इनके नाम से प्रख्यात बहुत से ग्रंथ दूसरे कवियों के रचे हैं पर इनकी रचनाएँ भी कम नहीं हैं। नीचे इनकी बनाई पुस्तकों के नाम दिए जाते हैं जिनसे विदित होगा कि कितने विषयों पर इन्होंने लिखा है - (1) अष्टयाम आह्निक, (2) आनंदरघुनंदन (नाटक), (3) उत्तमकाव्यप्रकाश, (4) गीतारघुनंदन शतिका, (5) रामायण, (6) गीता रघुनंदन प्रामाणिक, (7) सर्वसंग्रह, (8) कबीर बीजक की टीका, (9) विनयपत्रिका की टीका, (10) रामचंद्र की सवारी, (11) भजन, (12) पदार्थ, (13) धानुर्विद्या, (14) आनंद रामायण, (15) परधर्म निर्णय, (16) शांतिशतक, (17) वेदांत पंचकशतिका, (18) गीतावली पूर्वार्ध्द, (19) धा्रुवाष्टक, (20) उत्तम नीतिचंद्रिका, (21) अबोधनीति, (22) पाखंड खंडिका, (23) आदिमंगल, (24) बसंत चौंतीसी, (25) चौरासी रमैनी, (26) ककहरा, (27) शब्द, (28) विश्वभोजनप्रसाद, (29) ध्यान मंजरी, (30) विश्वनाथ प्रकाश, (31) परमतत्व, (32) संगीत रघुनंदन इत्यादि।
रामोपासक
यद्यपि ये रामोपासक थे, पर कुलपरंपरा के अनुसार निर्गुणसंत मत की बानी का भी आदर करते थे। कबीरदास के शिष्य धर्मदास का बांधव नरेश के यहाँ जाकर उपदेश सुनाना परंपरा से प्रसिद्ध है। 'ककहरा', 'शब्द', 'रमैनी' आदि उसी प्रभाव के द्योतक हैं। पर इनकी साहित्यिक रचना प्रधानत: 'रामचरित' संबंधी है। 'कबीर बीजक की टीका' इन्होंने निर्गुण ब्रह्म के स्थान पर सगुण राम पर घटाई है। ब्रजभाषा में नाटक पहले पहल इन्होंने लिखा। इस दृष्टि से इनका 'आनंदरघुनंदन नाटक' विशेष महत्व की वस्तु है। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने इसे हिन्दी का प्रथम नाटक माना है। यद्यपि इसमें पद्यों की प्रचुरता है, पर संवाद सब ब्रजभाषा गद्य में है, अंकविधान और पात्रविधान भी है। हिन्दी के प्रथम नाटककार के रूप में ये चिरस्मरणीय हैं।
भाषा
इनकी कविता अधिकतर या तो वर्णनात्मक है अथवा उपदेशात्मक। भाषा स्पष्ट और परिमार्जित है। -
भाइन भृत्यन विष्णु सो रैयत, भानु सो सत्रुन काल सो भावै।
सत्रु बली सों बचे करि बुद्धि औ अस्त्रा सों धर्म की रीति चलावै
जीतन को करै केते उपाय औ दीरघ दृष्टि सबै फल पावै।
भाखत है बिसुनाथ धा्रुवै नृप सो कबहूँ नहिं राज गँवावै
बाजि गज सोर रथ सुतूर कतार जेते,
प्यादे ऐंड़वारे जे सबीह सरदार के।
कुँवर छबीले जे रसीले राजबंस वारे,
सूर अनियारे अति प्यारे सरकार के
केते जातिवारे, केते केते देसवारे,
जीव स्वान सिंह आदि सैलवारे जे सिकार के।
डंका की धुकार ह्वै सवार सबैं एक बार,
राजैं वार पार कार कोशलकुमार के
उठौ कुँवर दोउ प्रान पियारे।
हिमरितु प्रात पाय सब मिटिगे नभसर पसरे पुहकर तारे
जगवन महँ निकस्यो हरषित हिय बिचरन हेत दिवस मनियारो।
विश्वनाथ यह कौतुक निरखहु रविमनि दसहु दिसिन उजियारो
करि जो कर में कयलास लियो कसिके अब नाक सिकोरतहै।
दइ तालन बीस भुजा झहराय झुको धानु को झकझोरत है
तिल एक हलै न हलै पुहुमी रिसि पीसि के दाँतन तोरत है।
मन में यह ठीक भयो हमरे मद काको महेस न मोरत है
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
आचार्य, रामचंद्र शुक्ल “प्रकरण 3”, हिन्दी साहित्य का इतिहास (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृष्ठ सं. 238-39।
संबंधित लेख