अर्जुन की प्रतिज्ञा -मैथिलीशरण गुप्त: Difference between revisions
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|चित्र=Maithilisharan-Gupt.jpg | |चित्र=Maithilisharan-Gupt.jpg | ||
| | |चित्र का नाम=मैथिलीशरण गुप्त | ||
| | |कवि= [[मैथिलीशरण गुप्त]] | ||
|जन्म=[[3 अगस्त]], | |जन्म=[[3 अगस्त]], 1886 | ||
|जन्म भूमि=चिरगाँव, [[झाँसी]], [[उत्तर प्रदेश]] | |जन्म भूमि=चिरगाँव, [[झाँसी]], [[उत्तर प्रदेश]] | ||
| | |अभिभावक=सेठ रामचरण, काशीबाई | ||
|पति/पत्नी= | |पति/पत्नी= | ||
|संतान= | |संतान= | ||
|कर्म भूमि= | |कर्म भूमि= | ||
|कर्म-क्षेत्र=नाटरकार, लेखक, कवि | |कर्म-क्षेत्र=नाटरकार, लेखक, कवि | ||
|मृत्यु=[[12 दिसंबर]], | |मृत्यु=[[12 दिसंबर]], 1964 | ||
|मृत्यु स्थान=चिरगाँव, [[झाँसी]] | |मृत्यु स्थान=चिरगाँव, [[झाँसी]] | ||
|मुख्य रचनाएँ=पंचवटी, साकेत, यशोधरा, द्वापर, झंकार, जयभारत | |मुख्य रचनाएँ=पंचवटी, साकेत, यशोधरा, द्वापर, झंकार, जयभारत | ||
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<poem> | <poem> | ||
उस काल मारे क्रोध के तन काँपने उसका लगा, | उस काल मारे क्रोध के तन काँपने उसका लगा, | ||
मानों हवा के वेग से सोता हुआ सागर | मानों हवा के वेग से सोता हुआ सागर जगा। | ||
मुख-बाल-रवि-सम लाल होकर ज्वाल सा बोधित हुआ, | मुख-बाल-रवि-सम लाल होकर ज्वाल सा बोधित हुआ, | ||
प्रलयार्थ उनके मिस वहाँ क्या काल ही क्रोधित हुआ ? | प्रलयार्थ उनके मिस वहाँ क्या काल ही क्रोधित हुआ? | ||
युग-नेत्र उनके जो अभी थे पूर्ण जल की धार-से, | युग-नेत्र उनके जो अभी थे पूर्ण जल की धार-से, | ||
अब | अब रोष के मारे हुए, वे दहकते अंगार-से । | ||
निश्चय अरुणिमा- | निश्चय अरुणिमा-मित्त अनल की जल उठी वह ज्वाल सी, | ||
तब तो दृगों का जल गया शोकाश्रु जल तत्काल | तब तो दृगों का जल गया शोकाश्रु जल तत्काल ही। | ||
साक्षी रहे संसार करता हूँ प्रतिज्ञा पार्थ मैं, | साक्षी रहे संसार करता हूँ प्रतिज्ञा पार्थ मैं, | ||
पूरा करूँगा कार्य सब कथानुसार यथार्थ | पूरा करूँगा कार्य सब कथानुसार यथार्थ मैं। | ||
जो एक बालक को कपट से मार हँसते हैँ अभी, | जो एक बालक को कपट से मार हँसते हैँ अभी, | ||
वे शत्रु सत्वर शोक-सागर-मग्न दीखेंगे | वे शत्रु सत्वर शोक-सागर-मग्न दीखेंगे सभी। | ||
अभिमन्यु-धन के निधन से कारण हुआ जो मूल है, | अभिमन्यु-धन के निधन से कारण हुआ जो मूल है, | ||
इससे हमारे हत हृदय को, हो रहा जो शूल है, | इससे हमारे हत हृदय को, हो रहा जो शूल है, | ||
उस खल जयद्रथ को | उस खल जयद्रथ को जगत् में मृत्यु ही अब सार है, | ||
उन्मुक्त बस उसके लिये | उन्मुक्त बस उसके लिये रौरव नरक का द्वार है। | ||
उपयुक्त उस खल को न यद्यपि मृत्यु का भी दंड है, | उपयुक्त उस खल को न यद्यपि मृत्यु का भी दंड है, | ||
पर मृत्यु से बढ़कर न जग में दण्ड और प्रचंड है । | पर मृत्यु से बढ़कर न जग में दण्ड और प्रचंड है । | ||
अतएव कल उस नीच को रण- | अतएव कल उस नीच को रण-मध्य जो मारूँ न मैं, | ||
तो सत्य कहता हूँ कभी शस्त्रास्त्र फिर धारूँ न | तो सत्य कहता हूँ कभी शस्त्रास्त्र फिर धारूँ न मैं। | ||
अथवा अधिक कहना वृथा है, पार्थ का प्रण है यही, | अथवा अधिक कहना वृथा है, पार्थ का प्रण है यही, | ||
साक्षी रहे सुन ये | साक्षी रहे सुन ये वचन रवि, शशि, अनल, अंबर, मही। | ||
सूर्यास्त से पहले न जो मैं कल जयद्रथ- | सूर्यास्त से पहले न जो मैं कल जयद्रथ-वध करूँ, | ||
तो शपथ करता हूँ स्वयं मैं ही अनल में जल | तो शपथ करता हूँ स्वयं मैं ही अनल में जल मरूँ। | ||
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उस काल मारे क्रोध के तन काँपने उसका लगा, |
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