उठ महान -माखन लाल चतुर्वेदी: Difference between revisions

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उठ महान ! तूने अपना स्वर
उठ महान! तूने अपना स्वर,
यों क्यों बेंच दिया?
यों क्यों बेच दिया?
प्रज्ञा दिग्वसना, कि प्राण् का
प्रज्ञा दिग्वसना, कि प्राण का,
पट क्यों खेंच दिया?
पट क्यों खेंच दिया?


वे गाये, अनगाये स्वर सब
वे गाये, अनगाये स्वर सब,
वे आये, बन आये वर सब
वे आये, बन आये वर सब,
जीत-जीत कर, हार गये से
जीत-जीत कर, हार गये से,
प्रलय बुद्धिबल के वे घर सब!
प्रलय बुद्धिबल के वे घर सब!


तुम बोले, युग बोला अहरह
तुम बोले, युग बोला अहरह,
गंगा थकी नहीं प्रिय बह-बह
गंगा थकी नहीं प्रिय बह-बह,
इस घुमाव पर, उस बनाव पर
इस घुमाव पर, उस बनाव पर,
कैसे क्षण थक गये, असह-सह!
कैसे क्षण थक गये, असह-सह!


पानी बरसा
पानी बरसा,
बाग ऊग आये अनमोले
बाग़ ऊग आये अनमोले,
रंग-रँगी पंखुड़ियों ने
रंग-रँगी पंखुड़ियों ने,
अन्तर तर खोले;
अन्तर तर खोले;


पर बरसा पानी ही था
पर बरसा पानी ही था,
वह रक्त न निकला!
वह रक्त न निकला!
सिर दे पाता, क्या
सिर दे पाता, क्या
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प्रज्ञा दिग्वसना? कि प्राण का पट क्यों खेंच दिया!
प्रज्ञा दिग्वसना? कि प्राण का पट क्यों खेंच दिया!
उठ महान् तूने अपना स्वर यों क्यों बेंच दिया!  
उठ महान् तूने अपना स्वर यों क्यों बेच दिया!  
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Latest revision as of 09:17, 12 April 2018

उठ महान -माखन लाल चतुर्वेदी
कवि माखन लाल चतुर्वेदी
जन्म 4 अप्रैल, 1889 ई.
जन्म स्थान बावई, मध्य प्रदेश
मृत्यु 30 जनवरी, 1968 ई.
मुख्य रचनाएँ कृष्णार्जुन युद्ध, हिमकिरीटिनी, साहित्य देवता, हिमतरंगिनी, माता, युगचरण, समर्पण, वेणु लो गूँजे धरा, अमीर इरादे, ग़रीब इरादे
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
माखन लाल चतुर्वेदी की रचनाएँ

उठ महान! तूने अपना स्वर,
यों क्यों बेच दिया?
प्रज्ञा दिग्वसना, कि प्राण का,
पट क्यों खेंच दिया?

वे गाये, अनगाये स्वर सब,
वे आये, बन आये वर सब,
जीत-जीत कर, हार गये से,
प्रलय बुद्धिबल के वे घर सब!

तुम बोले, युग बोला अहरह,
गंगा थकी नहीं प्रिय बह-बह,
इस घुमाव पर, उस बनाव पर,
कैसे क्षण थक गये, असह-सह!

पानी बरसा,
बाग़ ऊग आये अनमोले,
रंग-रँगी पंखुड़ियों ने,
अन्तर तर खोले;

पर बरसा पानी ही था,
वह रक्त न निकला!
सिर दे पाता, क्या
कोई अनुरक्त न निकला?

प्रज्ञा दिग्वसना? कि प्राण का पट क्यों खेंच दिया!
उठ महान् तूने अपना स्वर यों क्यों बेच दिया!

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