अपर्णा: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''अपर्णा''' माता पार्वती का ही एक अन्य नाम है। पौराणि...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
 
(2 intermediate revisions by 2 users not shown)
Line 1: Line 1:
'''अपर्णा''' माता [[पार्वती]] का ही एक अन्य नाम है। पौराणिक धर्म ग्रंथों और [[हिन्दू]] मान्यताओं के अनुसार पार्वती ने भगवान [[शिव]] के लिए वर्षों तप किया था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक=राणाप्रसाद शर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, आज भवन, संत कबीर मार्ग, वाराणसी|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=23|url=}}</ref>
'''अपर्णा''' [[पार्वती|माता पार्वती]] का ही एक अन्य नाम है। पौराणिक धर्म ग्रंथों और [[हिन्दू]] मान्यताओं के अनुसार पार्वती ने [[शिव|भगवान शिव]] के लिए वर्षों तप किया था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक=राणाप्रसाद शर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, आज भवन, संत कबीर मार्ग, वाराणसी|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=23|url=}}</ref> अपनी अति दुष्कर तपस्या के कारण ही इन्हें 'तपश्चारिणी' अर्थात् 'ब्रह्मचारिणी' नाम से भी अम्बोधित किया गया।


*अपनी तपस्या के दौरान पार्वती ने अन्न-[[जल]] तक का त्याग कर दिया था।
*तपस्या के दौरान माता पार्वती ने एक हज़ार वर्ष तक केवल [[फल]] खाकर ही व्यतीत किए और सौ वर्ष तक केवल शाक पर निर्भर रहीं।
*पार्वती की माता ने उन्हें ऐसा करने से मना किया और कहा "उमा ऐसा मत करो"। इसी से इनका नाम 'उमा' पड़ गया।
*उपवास के समय खुले [[आकाश तत्त्व|आकाश]] के नीचे [[वर्षा]] और धूप के विकट कष्ट सहे।
*बाद में केवल ज़मीन पर टूट कर गिरे बेलपत्रों को खाकर ही तीन हज़ार वर्ष तक [[शंकर|भगवान शंकर]] की आराधना करती रहीं।
*कई हज़ार वर्षों तक पार्वती निर्जल और निराहार रह कर व्रत करती रहीं। पत्तों को भी छोड़ देने के कारण उनका एक नाम '''अपर्णा''' पड़ा।


<blockquote>"पुनि परिहरेउ सुखानेउ परना। उमा नाम तब भयउ अपरना।"<ref>[[रामायण]], बालकाण्ड, दो. 73|7 तथा [[ब्रह्मांडपुराण]] 3.10.8.13; [[वायुपुराण]] 72.7, 11.12</ref></blockquote>
<blockquote>"पुनि परिहरेउ सुखानेउ परना। उमा नाम तब भयउ अपरना।"<ref>[[रामायण]], बालकाण्ड, दो. 73|7 तथा [[ब्रह्मांडपुराण]] 3.10.8.13; [[वायुपुराण]] 72.7, 11.12</ref></blockquote>
*'[[रामचरितमानस]]' के अनुसार 'अपर्णा' नैना से उत्पन्न हिमालय की ज्येष्ठ कन्या का नाम है। उमा तथा पार्वती के नाम से प्रसिद्ध शिव की पत्नी। [[नारद]] के उद्देश्य अनुसार शिव को वर रूप में प्राप्त करने के लिए इन्होंने दुस्साध्य तप किया, यहां तक कि कालांतर में इन्होंने वृक्षों की कोपलों को खाना भी त्याग दिया। तभी से इनका नाम अपर्णा हुआ<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी साहित्य कोश, भाग 2|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= डॉ. धीरेंद्र वर्मा|पृष्ठ संख्या=16|url=}}</ref>-
"उमहि नाम तब भयउ अपर्णा"<ref>[[रामचरितमानस]] 1/74/4</ref>


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
Line 11: Line 17:
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{पौराणिक चरित्र}}
{{पौराणिक चरित्र}}
[[Category:पौराणिक चरित्र]][[Category:पौराणिक कोश]][[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]]
[[Category:पौराणिक चरित्र]][[Category:पौराणिक कोश]][[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]][[Category:हिन्दू धर्म कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 08:11, 9 June 2018

अपर्णा माता पार्वती का ही एक अन्य नाम है। पौराणिक धर्म ग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार पार्वती ने भगवान शिव के लिए वर्षों तप किया था।[1] अपनी अति दुष्कर तपस्या के कारण ही इन्हें 'तपश्चारिणी' अर्थात् 'ब्रह्मचारिणी' नाम से भी अम्बोधित किया गया।

  • तपस्या के दौरान माता पार्वती ने एक हज़ार वर्ष तक केवल फल खाकर ही व्यतीत किए और सौ वर्ष तक केवल शाक पर निर्भर रहीं।
  • उपवास के समय खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के विकट कष्ट सहे।
  • बाद में केवल ज़मीन पर टूट कर गिरे बेलपत्रों को खाकर ही तीन हज़ार वर्ष तक भगवान शंकर की आराधना करती रहीं।
  • कई हज़ार वर्षों तक पार्वती निर्जल और निराहार रह कर व्रत करती रहीं। पत्तों को भी छोड़ देने के कारण उनका एक नाम अपर्णा पड़ा।

"पुनि परिहरेउ सुखानेउ परना। उमा नाम तब भयउ अपरना।"[2]

  • 'रामचरितमानस' के अनुसार 'अपर्णा' नैना से उत्पन्न हिमालय की ज्येष्ठ कन्या का नाम है। उमा तथा पार्वती के नाम से प्रसिद्ध शिव की पत्नी। नारद के उद्देश्य अनुसार शिव को वर रूप में प्राप्त करने के लिए इन्होंने दुस्साध्य तप किया, यहां तक कि कालांतर में इन्होंने वृक्षों की कोपलों को खाना भी त्याग दिया। तभी से इनका नाम अपर्णा हुआ[3]-

"उमहि नाम तब भयउ अपर्णा"[4]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पौराणिक कोश |लेखक: राणाप्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, आज भवन, संत कबीर मार्ग, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 23 |
  2. रामायण, बालकाण्ड, दो. 73|7 तथा ब्रह्मांडपुराण 3.10.8.13; वायुपुराण 72.7, 11.12
  3. हिन्दी साहित्य कोश, भाग 2 |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |संपादन: डॉ. धीरेंद्र वर्मा |पृष्ठ संख्या: 16 |
  4. रामचरितमानस 1/74/4

संबंधित लेख