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'''भरमी''' [[भारत]] के एक [[कवि]] थे। इनके विषय में निश्चित रूप से कुछ अधिक ज्ञात नहीं है। शिवसिंह ने इनके एक नीति-विषयक [[छप्पय]] को 'सरोज' में स्थान दिया है, इससे ज्ञात होता है कि ये नीति के कवि रहे थे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी साहित्य कोश, भाग 2|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= डॉ. धीरेंद्र वर्मा|पृष्ठ संख्या=404|url=}}</ref>
'''भरमी''' [[भारत]] के रीतिकालीन [[कवि]] थे। इनके विषय में निश्चित रूप से कुछ अधिक ज्ञात नहीं है। शिवसिंह ने इनके एक नीति-विषयक [[छप्पय]] को 'सरोज' में स्थान दिया है, इससे ज्ञात होता है कि ये नीति के कवि रहे थे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी साहित्य कोश, भाग 2|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= डॉ. धीरेंद्र वर्मा|पृष्ठ संख्या=404|url=}}</ref>


*शिवसिंह नें कवि भरमी का उपस्थिति-काल 1649 ई. माना है। [[जॉर्ज ग्रियर्सन|ग्रियर्सन]] इसे उपस्थिति काल और मिश्रबन्धु रचना काल मानते हैं।
*शिवसिंह नें कवि भरमी का उपस्थिति-काल 1649 ई. माना है। [[जॉर्ज ग्रियर्सन|ग्रियर्सन]] इसे उपस्थिति काल और मिश्रबन्धु रचना काल मानते हैं।
*'कालिदास हजारा' में भरमी के [[छन्द]] संकलित हैं। इससे इनको 17वीं [[शताब्दी]] के उत्तरार्द्ध का [[कवि]] मानना चाहिए।
*'कालिदास हजारा' में भरमी के [[छन्द]] संकलित हैं। इससे इनको 17वीं [[शताब्दी]] के उत्तरार्ध का [[कवि]] मानना चाहिए।
*'दि. भू.' में गोकुल कवि ने इनके नख-शिख सम्बन्धी चार छन्द उदाहृत किये हैं। इस प्रकार भरमी [[रीतिकाल|रीतिकालीन]] परम्परा के शृंगारी कवि ही जाने पड़ते हैं।
*'दि. भू.' में गोकुल कवि ने इनके नख-शिख सम्बन्धी चार छन्द उदाहृत किये हैं। इस प्रकार भरमी [[रीतिकाल|रीतिकालीन]] परम्परा के श्रृंगारी कवि ही जान पड़ते हैं।





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भरमी भारत के रीतिकालीन कवि थे। इनके विषय में निश्चित रूप से कुछ अधिक ज्ञात नहीं है। शिवसिंह ने इनके एक नीति-विषयक छप्पय को 'सरोज' में स्थान दिया है, इससे ज्ञात होता है कि ये नीति के कवि रहे थे।[1]

  • शिवसिंह नें कवि भरमी का उपस्थिति-काल 1649 ई. माना है। ग्रियर्सन इसे उपस्थिति काल और मिश्रबन्धु रचना काल मानते हैं।
  • 'कालिदास हजारा' में भरमी के छन्द संकलित हैं। इससे इनको 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध का कवि मानना चाहिए।
  • 'दि. भू.' में गोकुल कवि ने इनके नख-शिख सम्बन्धी चार छन्द उदाहृत किये हैं। इस प्रकार भरमी रीतिकालीन परम्परा के श्रृंगारी कवि ही जान पड़ते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी साहित्य कोश, भाग 2 |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |संपादन: डॉ. धीरेंद्र वर्मा |पृष्ठ संख्या: 404 |

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