स्वामी अग्रदास: Difference between revisions
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Revision as of 09:21, 11 September 2012
रामानंद जी के शिष्य 'अनंतानंद' और 'अनंतानंद' के शिष्य 'कृष्णदास पयहारी' थे।
- कृष्णदास पयहारी के शिष्य अग्रदासजी थे।
- इन्हीं अग्रदासजी के शिष्य 'भक्तमाल' के रचयिता प्रसिद्ध नाभादास जी थे। वहीं स्वामी अग्रदास भी रहा करते थे और संवत् 1632 के लगभग वर्तमान थे। इनकी बनाई चार पुस्तकों का पता है -
- हितोपदेश उपखाणाँ बावनी
- ध्यानमंजरी
- रामध्यानमंजरी
- कुंडलिया।
- इनकी कविता उसी ढंग की है जिस ढंग की कृष्णोपासक नंददास जी की है -
कुंडल ललित कपोल जुगल अस परम सुदेसा।
तिनको निरखि प्रकास लजत राकेस दिनेसा।।
मेचक कुटिल विसाल सरोरुह नैन सुहाए।
मुख पंकज के निकट मनो अलि छौना आए॥
- इनका एक पद इस प्रकार है -
पहरे राम तुम्हारे सोवत । मैं मतिमंद अंधा नहिं जोवत॥
अपमारग मारग महि जान्यो । इंद्री पोषि पुरुषारथ मान्यो॥
औरनि के बल अनतप्रकार । अगरदास के राम अधार॥
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
आचार्य, रामचंद्र शुक्ल “प्रकरण 4”, हिन्दी साहित्य का इतिहास (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृष्ठ सं. 107।
बाहरी कड़ियाँ
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