चांद का कुर्ता -रामधारी सिंह दिनकर: Difference between revisions

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उठ कर बैठा चांद एक दिन, माता से यह बोला
 
सिलवा दो मा मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला
हठ कर बैठा चांद एक दिन, माता से यह बोला,
सन सन चलती हवा रात भर जाड़े से मरता हूँ
"सिलवा दो मां, मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला।
ठिठुर ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ
आसमान का सफर और यह मौसम है जाड़े का
सन-सन चलती हवा रात भर, जाड़े से मरता हूं,
न हो अगर तो ला दो कुर्ता ही को भाड़े का
ठिठुर-ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूं।
बच्चे की सुन बात, कहा माता ने 'अरे सलोने`
कुशल करे भगवान, लगे मत तुझको जादू टोने
आसमान का सफर और यह मौसम है जाड़े का,
जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो डरती हूँ
न हो अगर तो ला दो, कुर्ता ही कोई भाड़े का।"
एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ
कभी एक अंगुल भर चौड़ा, कभी एक फुट मोटा
बच्चे की सुन बात कहा माता ने, " अरे सलोने,
बड़ा किसी दिन हो जाता है, और किसी दिन छोटा
कुशल करें भगवान, लगें मत तुझको जादू-टोने।
घटता-बढ़ता रोज, किसी दिन ऐसा भी करता है
नहीं किसी की भी आँखों को दिखलाई पड़ता है
जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो डरती हूं,
अब तू ही ये बता, नाप तेरी किस रोज लिवायें
एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूं।
सी दे एक झिंगोला जो हर रोज बदन में आये!
कभी एक अंगुल भर चौड़ा, कभी एक फुट मोटा,
बड़ा किसी दिन हो जाता है और किसी दिन छोटा।
घटता बढ़ता रोज, किसी दिन ऐसा भी करता है,
नहीं किसी की आंखों को दिखलाई पड़ता है।
अब तू ही तो बता, नाप तेरा किस रोज लिवायें,
सीं दें एक झिंगोला जो हर दिन बदन में आये।" 


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Revision as of 12:16, 20 August 2011

चांद का कुर्ता -रामधारी सिंह दिनकर
कवि रामधारी सिंह दिनकर
जन्म 23 सितंबर, सन 1908
जन्म स्थान सिमरिया, ज़िला मुंगेर (बिहार)
मृत्यु 24 अप्रैल, सन 1974
मृत्यु स्थान चेन्नई, तमिलनाडु
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
रामधारी सिंह दिनकर की रचनाएँ


हठ कर बैठा चांद एक दिन, माता से यह बोला,
"सिलवा दो मां, मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला।
 
सन-सन चलती हवा रात भर, जाड़े से मरता हूं,
ठिठुर-ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूं।
 
आसमान का सफर और यह मौसम है जाड़े का,
न हो अगर तो ला दो, कुर्ता ही कोई भाड़े का।"
 
बच्चे की सुन बात कहा माता ने, " अरे सलोने,
कुशल करें भगवान, लगें मत तुझको जादू-टोने।
 
जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो डरती हूं,
एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूं।
 
कभी एक अंगुल भर चौड़ा, कभी एक फुट मोटा,
बड़ा किसी दिन हो जाता है और किसी दिन छोटा।
 
घटता बढ़ता रोज, किसी दिन ऐसा भी करता है,
नहीं किसी की आंखों को दिखलाई पड़ता है।
 
अब तू ही तो बता, नाप तेरा किस रोज लिवायें,
सीं दें एक झिंगोला जो हर दिन बदन में आये।"

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