यौवन का पागलपन -माखन लाल चतुर्वेदी: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('{{पुनरीक्षण}} {| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
m (Text replace - "दुनियाँ " to "दुनिया ")
Line 36: Line 36:
     सपना है, जादू है, छल है ऐसा
     सपना है, जादू है, छल है ऐसा
     पानी पर बनती-मिटती रेखा-सा,
     पानी पर बनती-मिटती रेखा-सा,
     मिट-मिटकर दुनियाँ देखे रोज़ तमाशा।
     मिट-मिटकर दुनिया देखे रोज़ तमाशा।


         यह गुदगुदी, यही बीमारी,
         यह गुदगुदी, यही बीमारी,

Revision as of 10:12, 8 July 2012

चित्र:Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"
यौवन का पागलपन -माखन लाल चतुर्वेदी
कवि माखन लाल चतुर्वेदी
जन्म 4 अप्रैल, 1889 ई.
जन्म स्थान बावई, मध्य प्रदेश
मृत्यु 30 जनवरी, 1968 ई.
मुख्य रचनाएँ कृष्णार्जुन युद्ध, हिमकिरीटिनी, साहित्य देवता, हिमतरंगिनी, माता, युगचरण, समर्पण, वेणु लो गूँजे धरा, अमीर इरादे, गरीब इरादे
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
माखन लाल चतुर्वेदी की रचनाएँ

हम कहते हैं बुरा न मानो, यौवन मधुर सुनहली छाया।

    सपना है, जादू है, छल है ऐसा
    पानी पर बनती-मिटती रेखा-सा,
    मिट-मिटकर दुनिया देखे रोज़ तमाशा।

        यह गुदगुदी, यही बीमारी,
        मन हुलसावे, छीजे काया।

हम कहते हैं बुरा न मानो, यौवन मधुर सुनहली छाया।

    वह आया आँखों में, दिल में, छुपकर,
    वह आया सपने में, मन में, उठकर,
    वह आया साँसों में से रुक-रुककर।

        हो न पुरानी, नई उठे फिर
        कैसी कठिन मोहनी माया!

हम कहते हैं बुरा न मानो, यौवन मधुर सुनहली छाया।

संबंधित लेख