सिपाही -माखन लाल चतुर्वेदी: Difference between revisions

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छुए क्यों मुझे विपुल सम्मान?
छुए क्यों मुझे विपुल सम्मान?
भूलो ऐ इतिहास,
भूलो ऐ इतिहास,
खरीदे हुए विश्व-ईमान !!
ख़रीदे हुए विश्व-ईमान !!
अरि-मुड़ों का दान,
अरि-मुड़ों का दान,
रक्त-तर्पण भर का अभिमान,
रक्त-तर्पण भर का अभिमान,

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सिपाही -माखन लाल चतुर्वेदी
कवि माखन लाल चतुर्वेदी
जन्म 4 अप्रैल, 1889 ई.
जन्म स्थान बावई, मध्य प्रदेश
मृत्यु 30 जनवरी, 1968 ई.
मुख्य रचनाएँ कृष्णार्जुन युद्ध, हिमकिरीटिनी, साहित्य देवता, हिमतरंगिनी, माता, युगचरण, समर्पण, वेणु लो गूँजे धरा, अमीर इरादे, गरीब इरादे
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
माखन लाल चतुर्वेदी की रचनाएँ

गिनो न मेरी श्वास,
छुए क्यों मुझे विपुल सम्मान?
भूलो ऐ इतिहास,
ख़रीदे हुए विश्व-ईमान !!
अरि-मुड़ों का दान,
रक्त-तर्पण भर का अभिमान,
लड़ने तक महमान,
एक पँजी है तीर-कमान!
मुझे भूलने में सुख पाती,
जग की काली स्याही,
दासो दूर, कठिन सौदा है
मैं हूँ एक सिपाही !

क्या वीणा की स्वर-लहरी का
सुनूँ मधुरतर नाद?
छि:! मेरी प्रत्यंचा भूले
अपना यह उन्माद!
झंकारों का कभी सुना है
भीषण वाद विवाद?
क्या तुमको है कुस्र्-क्षेत्र
हलदी-घाटी की याद!
सिर पर प्रलय, नेत्र में मस्ती,
मुट्ठी में मन-चाही,
लक्ष्य मात्र मेरा प्रियतम है,
मैं हूँ एक सिपाही !
खीचों राम-राज्य लाने को,
भू-मंडल पर त्रेता !
बनने दो आकाश छेदकर
उसको राष्ट्र-विजेता

जाने दो, मेरी किस
बूते कठिन परीक्षा लेता,
कोटि-कोटि `कंठों' जय-जय है
आप कौन हैं, नेता?
सेना छिन्न, प्रयत्न खिन्न कर,
लाये न्योत तबाही,
कैसे पूजूँ गुमराही को
मैं हूँ एक सिपाही?

बोल अरे सेनापति मेरे!
मन की घुंडी खोल,
जल, थल, नभ, हिल-डुल जाने दे,
तू किंचित् मत डोल !
दे हथियार या कि मत दे तू
पर तू कर हुंकार,
ज्ञातों को मत, अज्ञातों को,
तू इस बार पुकार!
धीरज रोग, प्रतीक्षा चिन्ता,
सपने बनें तबाही,
कह `तैयार'! द्वार खुलने दे,
मैं हूँ एक सिपाही !

बदलें रोज बदलियाँ, मत कर
चिन्ता इसकी लेश,
गर्जन-तर्जन रहे, देख
अपना हरियाला देश!
खिलने से पहले टूटेंगी,
तोड़, बता मत भेद,
वनमाली, अनुशासन की
सूजी से अन्तर छेद!
श्रम-सीकर प्रहार पर जीकर,
बना लक्ष्य आराध्य
मैं हूँ एक सिपाही, बलि है
मेरा अन्तिम साध्य !

कोई नभ से आग उगलकर
किये शान्ति का दान,
कोई माँज रहा हथकड़ियाँ
छेड़ क्रांन्ति की तान!
कोई अधिकारों के चरणों
चढ़ा रहा ईमान,
`हरी घास शूली के पहले
की'-तेरा गुण गान!
आशा मिटी, कामना टूटी,
बिगुल बज पड़ी यार!
मैं हूँ एक सिपाही ! पथ दे,
खुला देख वह द्वार !!

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