सम्मन: Difference between revisions

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सम्मन मल्लावाँ (ज़िला हरदोई) के रहने वाले [[ब्राह्मण]] थे और [[संवत्]] 1834 में उत्पन्न हुए थे। इनके नीति के दोहे 'गिरधर की कुंडलिया' के समान गाँवों तक में प्रसिद्ध हैं। इनके कहने के ढंग में कुछ मार्मिकता है। 'दिनों के फेर' आदि के संबंध में इनके मर्मस्पर्शी दोहे स्त्रियों के मुँह से बहुत सुने जाते हैं। इन्होंने संवत् 1879 में 'पिंगल काव्यभूषण' नामक एक रीतिग्रंथ भी बनाया। पर ये अधिकतर अपने दोहों के लिए ही प्रसिद्ध हैं। इनका रचनाकाल संवत् 1860 से 1880 तक माना जा सकता है। -   
सम्मन मल्लावाँ (ज़िला हरदोई) के रहने वाले [[ब्राह्मण]] थे और [[संवत्]] 1834 में उत्पन्न हुए थे। इनके नीति के दोहे 'गिरधर की कुंडलिया' के समान गाँवों तक में प्रसिद्ध हैं। इनके कहने के ढंग में कुछ मार्मिकता है। 'दिनों के फेर' आदि के संबंध में इनके मर्मस्पर्शी दोहे स्त्रियों के मुँह से बहुत सुने जाते हैं। इन्होंने संवत् 1879 में 'पिंगल काव्यभूषण' नामक एक रीतिग्रंथ भी बनाया। पर ये अधिकतर अपने दोहों के लिए ही प्रसिद्ध हैं। इनका रचनाकाल संवत् 1860 से 1880 तक माना जा सकता है। -   
<poem>निकट रहे आदर घटे, दूरि रहे दुख होय।
<poem>निकट रहे आदर घटे, दूरि रहे दु:ख होय।
सम्मन या संसार में, प्रीति करौ जनि कोय
सम्मन या संसार में, प्रीति करौ जनि कोय
सम्मन चहौ सुख देह कौ तौ छाँड़ौ ये चारि।
सम्मन चहौ सुख देह कौ तौ छाँड़ौ ये चारि।

Latest revision as of 14:11, 2 June 2017

सम्मन मल्लावाँ (ज़िला हरदोई) के रहने वाले ब्राह्मण थे और संवत् 1834 में उत्पन्न हुए थे। इनके नीति के दोहे 'गिरधर की कुंडलिया' के समान गाँवों तक में प्रसिद्ध हैं। इनके कहने के ढंग में कुछ मार्मिकता है। 'दिनों के फेर' आदि के संबंध में इनके मर्मस्पर्शी दोहे स्त्रियों के मुँह से बहुत सुने जाते हैं। इन्होंने संवत् 1879 में 'पिंगल काव्यभूषण' नामक एक रीतिग्रंथ भी बनाया। पर ये अधिकतर अपने दोहों के लिए ही प्रसिद्ध हैं। इनका रचनाकाल संवत् 1860 से 1880 तक माना जा सकता है। -

निकट रहे आदर घटे, दूरि रहे दु:ख होय।
सम्मन या संसार में, प्रीति करौ जनि कोय
सम्मन चहौ सुख देह कौ तौ छाँड़ौ ये चारि।
चोरी, चुगली, जामिनी और पराई नारि
सम्मन मीठी बात सों होत सबै सुख पूर।
जेहि नहिं सीखो बोलिबो, तेहि सीखो सब धूर


टीका टिप्पणी और संदर्भ


आचार्य, रामचंद्र शुक्ल “प्रकरण 3”, हिन्दी साहित्य का इतिहास (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृष्ठ सं. 260।

बाहरी कड़ियाँ

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