अजामिल: Difference between revisions

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'''अजामिल''' [[कान्यकुब्ज]] (प्राचीन [[कन्नौज]]) निवासी एक [[ब्राह्मण]] था। वह गुणी भी था और समझदार भी। उसने [[वेद]]-शास्त्रों का विधिवत अध्ययन प्राप्त किया था। अपने यहाँ आने वाले गुरुजन, [[सन्त]] तथा अतिथियों का सम्मान भी वह श्रद्धापूर्वक करता था। इसके साथ ही वह उनसे ज्ञान चर्चा भी किया करता था। उसके घर में नित्यप्रति देवपूजन, [[यज्ञ]] तथा ब्राह्मण भोजन कराया जाता था। पूजन विषयक समस्त व्यवस्थायें स्वयं अजामिल देखा करता था। वह प्रयास करता था कि पूजन में प्रयुक्त होने वाली सामग्री [[फल]]-[[फूल]] तथा समिधाएँ पवित्र और श्रेष्ठ हों। वह वन तथा उपवन में जाकर इन सामग्रियों को एकत्र करता था।
'''अजामिल''' [[कान्यकुब्ज]] (प्राचीन [[कन्नौज]]) निवासी एक [[ब्राह्मण]] था। वह गुणी भी था और समझदार भी। उसने [[वेद]]-शास्त्रों का विधिवत अध्ययन प्राप्त किया था। अपने यहाँ आने वाले गुरुजन, [[सन्त]] तथा अतिथियों का सम्मान भी वह श्रद्धापूर्वक करता था। इसके साथ ही वह उनसे ज्ञान चर्चा भी किया करता था। उसके घर में नित्यप्रति देवपूजन, [[यज्ञ]] तथा ब्राह्मण भोजन कराया जाता था। पूजन विषयक समस्त व्यवस्थायें स्वयं अजामिल देखा करता था। वह प्रयास करता था कि पूजन में प्रयुक्त होने वाली सामग्री [[फल]]-[[फूल]] तथा समिधाएँ पवित्र और श्रेष्ठ हों। वह वन तथा उपवन में जाकर इन सामग्रियों को एकत्र करता था।
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==प्रेम प्रसंग==
==प्रेम प्रसंग==
एक दिन अजामिल वन से पूजन सामग्री एकत्रित कर घर लौट रहा था, तो उसने देखा एक कुंज में कोई युवक स्त्री के साथ प्रेम में लिप्त था। अजामिल ने संस्कारवश अपने आपको यह देखने से रोकने का पूरा प्रयत्न किया, किन्तु सफल न हो सका। वह बार-बार इस प्रेम प्रसंग को देखकर आनन्दित होने लगा। बाद में उसने स्त्री से परिचय प्राप्त किया। यह ज्ञात होने पर कि वह वैश्या है, अजामिल प्रतिदिन उसके यहाँ जाने लगा। संसर्ग से धीरे-धीरे उसके सत्कर्म प्रभावित होने लगे और वह वैश्या की प्रत्येक कामना की तुष्टि के लिए तरह-तरह के दुष्कर्मों में लिप्त होता गया। उसने चोरी, डकैती और लूट-पाट शुरू कर दिए। हत्याएँ करने लगा तथा किसी भी प्रकार से धन प्राप्ति हेतु अन्यायपूर्ण कर्म करके उसे सन्तुष्टि प्राप्त होने लगी। स्थिति यह हुई कि वैश्या से अजामिल को नौ पुत्र प्राप्त हुए तथा दसवीं सन्तान उसकी पत्नी के गर्भ में थी।
एक दिन अजामिल वन से पूजन सामग्री एकत्रित कर घर लौट रहा था, तो उसने देखा एक कुंज में कोई युवक स्त्री के साथ प्रेम में लिप्त था। अजामिल ने संस्कारवश अपने आपको यह देखने से रोकने का पूरा प्रयत्न किया, किन्तु सफल न हो सका। वह बार-बार इस प्रेम प्रसंग को देखकर आनन्दित होने लगा। बाद में उसने स्त्री से परिचय प्राप्त किया। यह ज्ञात होने पर कि वह वैश्या है, अजामिल प्रतिदिन उसके यहाँ जाने लगा। संसर्ग से धीरे-धीरे उसके सत्कर्म प्रभावित होने लगे और वह वैश्या की प्रत्येक कामना की तुष्टि के लिए तरह-तरह के दुष्कर्मों में लिप्त होता गया। उसने चोरी, डकैती और लूट-पाट शुरू कर दिए। हत्याएँ करने लगा तथा किसी भी प्रकार से धन प्राप्ति हेतु अन्यायपूर्ण कर्म करके उसे सन्तुष्टि प्राप्त होने लगी। स्थिति यह हुई कि वैश्या से अजामिल को नौ पुत्र प्राप्त हुए तथा दसवीं सन्तान उसकी पत्नी के गर्भ में थी।
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Revision as of 13:34, 24 November 2012

thumb|250px|यमदूतों से अजामिल की रक्षा करते विष्णु पार्षद अजामिल कान्यकुब्ज (प्राचीन कन्नौज) निवासी एक ब्राह्मण था। वह गुणी भी था और समझदार भी। उसने वेद-शास्त्रों का विधिवत अध्ययन प्राप्त किया था। अपने यहाँ आने वाले गुरुजन, सन्त तथा अतिथियों का सम्मान भी वह श्रद्धापूर्वक करता था। इसके साथ ही वह उनसे ज्ञान चर्चा भी किया करता था। उसके घर में नित्यप्रति देवपूजन, यज्ञ तथा ब्राह्मण भोजन कराया जाता था। पूजन विषयक समस्त व्यवस्थायें स्वयं अजामिल देखा करता था। वह प्रयास करता था कि पूजन में प्रयुक्त होने वाली सामग्री फल-फूल तथा समिधाएँ पवित्र और श्रेष्ठ हों। वह वन तथा उपवन में जाकर इन सामग्रियों को एकत्र करता था।

प्रेम प्रसंग

एक दिन अजामिल वन से पूजन सामग्री एकत्रित कर घर लौट रहा था, तो उसने देखा एक कुंज में कोई युवक स्त्री के साथ प्रेम में लिप्त था। अजामिल ने संस्कारवश अपने आपको यह देखने से रोकने का पूरा प्रयत्न किया, किन्तु सफल न हो सका। वह बार-बार इस प्रेम प्रसंग को देखकर आनन्दित होने लगा। बाद में उसने स्त्री से परिचय प्राप्त किया। यह ज्ञात होने पर कि वह वैश्या है, अजामिल प्रतिदिन उसके यहाँ जाने लगा। संसर्ग से धीरे-धीरे उसके सत्कर्म प्रभावित होने लगे और वह वैश्या की प्रत्येक कामना की तुष्टि के लिए तरह-तरह के दुष्कर्मों में लिप्त होता गया। उसने चोरी, डकैती और लूट-पाट शुरू कर दिए। हत्याएँ करने लगा तथा किसी भी प्रकार से धन प्राप्ति हेतु अन्यायपूर्ण कर्म करके उसे सन्तुष्टि प्राप्त होने लगी। स्थिति यह हुई कि वैश्या से अजामिल को नौ पुत्र प्राप्त हुए तथा दसवीं सन्तान उसकी पत्नी के गर्भ में थी।

सन्त समूह का आगमन

एक दिन कुछ सन्तों का समूह उस ओर से गुजर रहा था। रात्रि अधिक होने पर उन्होंने उसी गांव में रहना उपयुक्त समझा, जिसमें अजामिल रहता था। गाँव वालों से आवास और भोजन के विषय में चर्चा करने पर गाँव वालों ने मजाक बनाते हुए साधुओं को अजामिल के घर का पता बता दिया। सन्त समूह अजामिल के घर पहुँच गया। उस समय अजामिल घर पर नहीं था। गाँव वालों ने सोचा था कि आज ये साधु निश्चित रूप से अजामिल के द्वार पर अपमानित होंगे तथा इन्हें पिटना भी पड़ेगा। आगे से ये स्वयं ही कभी इस गाँव की ओर कदम नहीं रखेंगे। सन्त मण्डली ने उसके द्वार पर जाकर राम नाम का उच्चारण किया। घर में से उसकी वही वैश्या पत्नी बाहर आई और साधुओं से बोली- "आप शीघ्र भोजन सामग्री लेकर यहाँ से निकल जायें अन्यथा कुछ ही क्षणों में अजामिल आ जायेगा और आप लोगों को परेशानी हो जायेगी।" उसकी बात सुनकर समस्त साधुगण भोजन की सूखी सामग्री लेकर उसके घर से थोड़ी ही दूरी पर एक वृक्ष के नीचे भोजन बनाने का उपक्रम करने लगे। भोजन बना, भोग लगा और सन्तों ने जब पा लिया, तब विचार किया कि यह भोजन किसी संस्कारी ब्राह्मण कुलोत्पन्न के घर का है। किन्तु समय के प्रभाव से यह कुसंस्कारी हो गया है।

पुत्र की प्राप्ति

सभी सन्त पुन: फिर से अजामिल के घर पहुँचे। उन्होंने बाहर से आवाज़ लगाई। अजामिल की स्त्री बाहर आई। सन्तों ने कहा- "बहन हम तुमसे एक बात कहने आये हैं।" स्त्री ने बताने के लिए कहा। सन्तों ने कहा- "तुम्हारे यहाँ जन्म लेने वाले शिशु का नाम 'नारायण' रखना।" संतगणों के ऐसा कहने पर अजामिल की स्त्री ने उन्हें ऐसा ही करने का वचन दिया। अजामिल की स्त्री ने दसवीं सन्तान के रूप में एक पुत्र को ही जन्म दिया, और उसका नाम 'नारायण' रख दिया। नारायण सभी का प्रिय था।

अन्त समय

अब अजामिल स्त्री और अपने पुत्र के मोह जाल में लिपट गया। कुछ समय बाद उसका अंत समय भी नजदीक आ गया। अति भयानक यमदूत उसे दिखलाई पड़े। भय और मोहवश अजामिल अत्यंत व्याकुल हुआ। अजामिल ने दु:खी होकर नारायण! नारायण! पुकारा। भगवान का नाम सुनते ही विष्णु पार्षद उसी समय उसी स्थान पर दौड़कर आ गए। यमदूतों ने जिस फाँसी से अजामिल को बांधा था, पार्षदों ने उसे तोड़ डाला। यमदूतों के पूछने पर पार्षदों ने धर्म का रहस्य समझाया। यमदूत नहीं माने। वे अजामिल को पापी समझकर अपने साथ ले जाना चाहते थे। तब पार्षदों ने यमदूतों को डांटकर वहाँ से भगा दिया। हारकर सब यमदूतों ने यमराज के पास जाकर पुकार की। तब धर्मराज ने कहा कि "तुम लोगों ने बड़ा नीच काम किया है। तुमने बड़ा अपराध किया है। अब सावधान रहना और जहाँ कहीं भी, कोई भी किसी भी प्रकार से भगवान के नाम का उच्चारण करे, वहाँ मत जाना।" यमराज ने यमदूतों से कहा "अपने कल्याण के लिए तुम लोग स्वयं भी 'हरी' का नाम और यश का गान करो।"


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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