जमाल: Difference between revisions
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*सहृदयता के अतिरिक्त इनमें 'शब्दक्रीड़ा' की निपुणता भी थी, इससे इन्होंने कुछ पहेलियाँ भी अपने दोहों में रखी हैं - | *सहृदयता के अतिरिक्त इनमें 'शब्दक्रीड़ा' की निपुणता भी थी, इससे इन्होंने कुछ पहेलियाँ भी अपने दोहों में रखी हैं - | ||
<poem>पूनम चाँद, कुसूँभ रँग नदी तीर द्रुम डाल। | <poem>पूनम चाँद, कुसूँभ रँग नदी तीर द्रुम डाल। |
Revision as of 08:23, 21 May 2017
- जमाल भारतीय काव्यपरंपरा से पूर्णत: परिचित कोई सहृदय मुसलमान कवि थे, जिनका रचनाकाल लगभग संवत 1627 अनुमानित किया गया है।
- इनके नीति और शृंगार के दोहे राजपूताने की तरफ बहुत जनप्रिय हैं।
- भावों की व्यंजना बहुत ही मार्मिक, पर सीधे सादे सरल ढंग से की गई है।
- जमाल का कोई ग्रंथ तो नहीं मिलता, पर कुछ संग्रहीत दोहे अवश्य मिलते हैं।
- सहृदयता के अतिरिक्त इनमें 'शब्दक्रीड़ा' की निपुणता भी थी, इससे इन्होंने कुछ पहेलियाँ भी अपने दोहों में रखी हैं -
पूनम चाँद, कुसूँभ रँग नदी तीर द्रुम डाल।
रेत भीत, भुस लीपणो ए थिर नहीं जमाल
रंग ज चोल मजीठ का संत वचन प्रतिपाल।
पाहण रेख रु करम गत ए किमि मिटैं जमाल
जमला ऐसी प्रीति कर जैसी केस कराय।
कै काला, कै ऊजला जब तब सिर स्यूँ जाय
मनसा तो गाहक भए नैना भए दलाल।
धानी बसत बेचै नहीं किस बिधा बनै जमाल
बालपणे धौला भया तरुणपणे भया लाल।
वृद्ध पणे काला भया कारण कोण जमाल
कामिण जावक रँग रच्यो दमकत मुकता कोर।
इम हंसा मोती तजे इम चुग लिए चकोर
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