क़ादिर बख्श: Difference between revisions

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Revision as of 12:17, 10 May 2011

  • क़ादिर बख्श पिहानी, जिला हरदोई के रहने वाले और सैयद इब्राहीम [1] [2] के शिष्य थे।
  • क़ादिर बख्श का जन्म संवत 1635 में माना जाता है। अत: इनका कविता काल संवत 1660 के आसपास समझा जा सकता है।
  • क़ादिर बख्श की कोई पुस्तक तो नहीं मिलती पर फुटकल कवित्त पाए जाते हैं। कविता ये चलती भाषा में अच्छी करते थे। इनका यह कवित्त लोगों के मुँह से बहुत सुनने में आता है,

गुन को न पूछै कोऊ, औगुन की बात पूछै,
कहा भयो दई! कलिकाल यों खरानो है।
पोथी औ पुरान ज्ञान ठट्ठन में डारि देत,
चुगुल चबाइन को मान ठहरानो है
कादिर कहत यासों कछु कहिबे को नाहिं,
जगत की रीत देखि चुप मन मानो है।
खोलि देखौ हियो सब ओरन सों भाँति भाँति,
गुन ना हिरानो, गुनगाहक हिरानो है


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. एफ0 ई. के0 ने अपनी इस पुस्तक में रसखान के विषय में कहा है कि यह पहले मुसलमान थे और इनका नाम सैयद इब्राहीम था। ये कृष्ण के भक्त हुए हैं। इन्होंने कृष्ण की प्रशंसा में काव्य-रचना की जो अति सुन्दर एवं मधुर है। उनके एक शिष्य कादिर बख़्त थे। उन्होंने भी हिन्दी में काव्य-रचना की। ए हिस्ट्री आफ हिन्दी लिटरेचर, पृ0 68
  2. अब्राहम जार्ज ग्रियर्सन ने लिखा है सैयद इब्राहीम उपनाम रसखान कवि, हरदोई ज़िले के अंतर्गत पिहानी के रहने वाले, जन्म काल 1573 ई.। यह पहले मुसलमान थे। बाद में वैष्णव होकर ब्रज में रहने लगे थे। इनका वर्णन 'भक्तमाल' में है। इनके एक शिष्य कादिर बख्श हुए। हिन्दी-साहित्य का प्रथम इतिहास, पृ0 107

बाहरी कड़ियाँ

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