रूपसाहि: Difference between revisions
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<poem>जगमगाति सारी जरी झलमल भूषन जोति। | <blockquote><poem>जगमगाति सारी जरी झलमल भूषन जोति। | ||
भरी दुपहरी तिया की भेंट पिया सों होति | भरी दुपहरी तिया की भेंट पिया सों होति | ||
लालन बेगि चलौ न क्यों बिना तिहारे बाल। | लालन बेगि चलौ न क्यों बिना तिहारे बाल। | ||
मार मरोरनि सो मरति करिए परसि निहाल</poem> | मार मरोरनि सो मरति करिए परसि निहाल</poem></blockquote> | ||
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Revision as of 10:16, 15 May 2011
- रीति काल के कवि रूपसाहि पन्ना के रहने वाले श्रीवास्तव कायस्थ थे।
- इन्होंने संवत 1813 में 'रूपविलास' नामक ग्रंथ लिखा जिसमें दोहे में ही कुछ पिंगल, कुछ अलंकार, नायिका भेद आदि हैं -
जगमगाति सारी जरी झलमल भूषन जोति।
भरी दुपहरी तिया की भेंट पिया सों होति
लालन बेगि चलौ न क्यों बिना तिहारे बाल।
मार मरोरनि सो मरति करिए परसि निहाल
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